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________________ अहिंसा के अछूते पहलु आदमी जब मियम को नहीं जानता तो उसका व्यवहार बहुत गलत हो जाता है। बाहर की दुनिया को जानने का नियम है आंख खोलकर देखना नौर भीतर की दुनिया को जानने का नियम है आख मूंदकर देखना। आंख जुली रखकर देखेंगे तो बाहर ही बाहर दिखेगा। बाहर की दुनिया का नियम १ शांति में जीना। खट-पट का जीवन कोलाहल का जीवन है। बड़े-बड़े शहरों का जीवन ऐसा ही होता है। कोलाहल के कारण लगता है कि कोई बड़ा शहर है। यदि शांति हो जाये, कोलाहल न हो तो ऐसा लगता है कि पहर कहां है ? अलग-अलग नियम होते हैं। प्रावाज क्यों नहीं एक महिला का मकान बन रहा था। जब मकान बन रहा था तो वहां काफी आवाजें हो रही थीं। जब काम चलता है, ईंटें घड़ी जाती हैं, छंटाई मी होती है । टक-टक की आवाज भी होती है। मकान बन गया और रंग-रोगन का काम शुरू हुआ। रंगाई, लिपाई, पुताई शुरू हुई तो खट-पट की आवाज बंद हो गई। महिला भीतर बैठी बोली-सब निकम्मे आदमी हैं, कोई काम ही नहीं करता, जी चुग रहे हैं काम से। उन्होंने कहा-हम तो काम कर रहे हैं । वह बोली, कहां कर रहे हो काम ? पहले काम करते थे तब खट-खट की आवाज आती थी। आजकल तो कोई आवाज ही नहीं आती है। इंटों के काम का नियम अलग होता है, रंगाई-पुताई का नियम अलग होता है। स्वयं को जानने का उपाय । अपने आपको जानने का नियम अलग है । वहां अशांति की जरूरत नहीं है। हलचल से स्वयं को नहीं जाना जा सकता। बिलकुल शांत वातावरण । शिथिलीकरण । कायोत्सर्ग की मुद्रा। शरीर को ढीला छोड़ देना । प्रवृत्तियों को बंद कर देना, इन्द्रियों का संयम कर लेना, न आंख से देखने का प्रयत्न, न कान से सुनने का प्रयत्न । सुनाई देता रहे पर प्रयत्न न रहे। न कुछ चखने का प्रयत्न, न कुछ छूने का प्रयत्न, इन्द्रियों का कोई प्रयत्न नहीं। इन्द्रियों का अप्रयत्न, शरीर का भी अप्रयत्न, मन का अप्रयत्न और शरीर का शिथिलीकरण, कायोत्सर्ग। यानी प्रयत्न से अप्रयत्न की दिशा में प्रस्थान । जब प्रयत्न चलता है तो हम बाहर की दुनियां को जानते हैं । जब अप्रयत्न घटित होता है तो अपने आपको हम जानते हैं। यदि कोई प्रयत्न के द्वारा, प्रवृत्ति के द्वारा हलचल के द्वारा अपने आपको जानना चाहे तो शायद जान नहीं सकेगा। इसके लिए काया की गुप्ति; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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