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अहिसा के अछूते पहलु
हैं। ध्यान करने वाला यदि इन सचाइयों का अनुभव नहीं करता है तो फिर दैनंदिन जीवन में वह कुछ भी लाभान्वित नहीं हो सकता । उसके लिए ध्यान करना भी एक मूर्च्छा बन जाएगा ।
मूर्च्छा का घेरा टूटे
सेठ के घर में डाकू घुस गए । सेठ अभी तक सोया नहीं था, जागृत था। डाकू ने सेठ के सामने जाकर कहा - सेठ साहब ! हम डाकू हैं । आपका घर लूटने आए हैं। अब आप निर्णय करें कि आपको प्राणों की रक्षा करनी है या धन की रक्षा करनी है ? यदि तिजोरी की चाबियां हमें सौंप देते हैं तो आपके प्राणों की रक्षा हो सकेगी । अन्यथा कठिनाई होगी । बोलो, आप क्या बचाना चाहते हैं—धन या प्राण ? सेठ बोला- प्राण ले लो । धन तो मैंने बुढ़ापे के लिए बचा रखा है । कितना विपर्यास कितनी बड़ी भ्रान्ति ! प्राण ही नहीं रहेंगे तो बुढ़ापा किसे आएगा ? कौन धन का उपभोग करेगा ? प्रत्येक आदमी इसी भ्रान्ति में जी रहा है । यह भ्रान्ति पाली जा रही है, पुष्ट की जा रही है । ध्यान के द्वारा ऐसी भ्रान्तियों को तोड़ना है और वास्तविक सचाइयों को जीना है । इन सचाइयों का निरन्तर अभ्यास ही हमें दुःखों से उबार सकता है । केवल सचाइयों का ज्ञान उबार नहीं सकता । जानना केवल जानना रह जाता है । जब तक वह अभ्यास में नहीं उतरता, तब तक कुछ नहीं बनता । जो व्यक्ति इन सचाइयों से सर्वात्मना परिचित हो जाता है वह विपरीत परिस्थिति में भी अपनी मनःस्थिति को अविचलित रख सकता है । जब तक इन सचाइयों का साक्षात्कार नहीं होता तब तक कोई भी आदमी विपरीत परिस्थिति में चलित हुए बिना नहीं रह सकता । यह ध्रुव सत्य है ।
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