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________________ सत्य और मानसिक शांति १७५ स्मृति या अनुभूति होना भी एक सचाई है। एक व्यावहारिक सचाई है और दूसरी वास्तविक । संयोग से जुड़ा है वियोग __चौथी सचाई है-अनित्यता। सारे संयोग अनित्य हैं; इसे आदमी नहीं जानता या जानता हुआ भी नहीं पहचानता। धन का संयोग हआ। आदमी उसे शाश्वत मानकर चलता है । वह उस धन की सुरक्षा के लिए क्या-क्या नहीं करता । जब धन चला जाता है या क्षीण हो जाता है तब आदमी की रोटी हराम हो जाती है, सारे सुख लुप्त हो जाते हैं। ऐसा इसलिए होता है कि उसने इस संयोग को अनित्य नहीं माना । अनित्यता को समझा नहीं। संयोग वास्तव में संयोग ही होता है। प्रिय आदमी चला जाता है तो आदमी रोने लग जाता है । वस्तु खो जाती है तो मन उदास हो जाता है । यह सारा इसीलिए होता है कि आदमी ने संयोग के स्वरूप को समझा नहीं। उसते एक पहलू को पकड़ा पर उसका जो दूसरा पहलू है--वियोग, उसे नजरअंदाज कर डाला। प्रत्येक संयोग अनित्य है । जिसका संयोग होता है उसका वियोग निश्चित है । संयोग के साथ वियोग लगा रहता है । इन दोनों को पृथक् नहीं किया जा सकता। इस सचाई को न पकड़ सकने के कारण आदमी बेहाल हो जाता है, बेभान हो जाता है। वास्तविक सचाई से जुड़ें हम इन सचाइयों के व्यावहारिक पहल से परिचित हैं, उसे पकड़ रखा है और उनके वास्तविक पहलू को विस्मृत कर चुके हैं । ध्यान के अभ्यास के द्वारा हम इन सचाइयों के वास्तविक स्वरूप को जीना सीखें, उनका अनुभव करें। यदि ऐसा नहीं होता है तो केवल एकाग्रता के द्वारा हमारे दुःख कम नहीं होंगे। उस ध्यान और एकाग्रता के द्वारा मानसिक कष्ट और संताप दूर होगा, जिसके साथ इन सचाइयों की अनुभूति होती चली जाएगी। संभव है आदत में बदलाव पांचवीं सचाई है-आदत बदली जा सकती है। इसका व्यावहारिक पहल है-आदत बदलती नहीं। जो आदत बन गई, वह नहीं बदल सकती। यह एक की नहीं, प्रायः सबकी धारणा है । यह भी सचाई का एक पहलू है पर इसका दूसरा पहलू यह है कि आदत बदली जा सकती है। यह सचाई ध्यान के द्वारा प्रगट होती है। संस्कारों को बदला जा सकता है, यह ध्यान के द्वारा प्राप्त होने वाली सचाई है। - यदि हम इन सभी सचाइयों के वास्तविक पहलू का अनुभव कर सकें तो मानसिक तनाव, संताप और दुःखों को कम करने में हम सफल हो सकते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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