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________________ ३१७० अहिंसा के अछूते पहलु एक बड़ी सचाई है । एक ओर समाज है तो एक ओर व्यक्ति अकेला है । एक ओर भीड़ है तो एक ओर अकेला है। प्रसन्नता का सूत्र जब तक हम अकेलेपन की सचाई को नहीं जानेंगे तब तक विपरीत परिस्थितियां पैदा होती रहेंगी और वे मानसिक शांति को भंग करती रहेंगी। जो व्यक्ति इस सचाई को जान लेता है कि मैं अकेला हूं और इसका प्रयोग करता है तो उसको कोई बात या घटना सताएगी नहीं। यानी समाज में, समूह में या घर-परिवार में कोई नहीं पूछता है तो वह सोचेगा 'मैं तो अकेला हूं'। वह अपने अकेलेपन की सचाई में डूब जाएगा और न पूछने वाली बात से वह सताया नहीं जाएगा। उसके मन की शांति कभी भंग नहीं होगी। उसका मन स्वस्थ और संतुलित रहे। अकेलेपन की अनुभूति प्रसन्न रहने का बड़ा सूत्र है । जिस व्यक्ति ने इस सचाई को पकड़ा है, वह सामाजिक परिस्थितियों में जीते हुए भी प्रसन्न और स्वस्थ जीवन जी सकता है। कोई त्राण नहीं है दूसरी सचाई है-मैं अत्राण हूं। हमने जीवन में अनेक शरण मान रखें हैं । आदमी सोचता है, जब कठिन परिस्थिति आएगी, मेरा मित्र मेरा सहयोग करेगा। मुझे पिता या माता उबारेगी। पत्नी या पुत्र मेरा सहयोग करेंगे । आदमी इस प्रकार अनेकविध शरण मान लेता है। किंतु स्थिति ऐसी आती है कि कोई शरण नहीं बनता। ___ आचार्य श्री उदयपुर में थे। एक बूढा व्यक्ति आकर अपनी दुःख-गाथा सुनाने लगा। उसने कहा, मेरे तीन लड़के हैं । उन्होंने मुझे घर से निकाल दिया है। मेरा घर छूट गया। मेरी सारी संपत्ति छूट गई। कोई सहारा नहीं है । बूढा हूं, बीमार हूं । सेवा की जरूरत है, पर कोई सेवा करने वाला नहीं है। लड़की के घर पर रहता हूं। वही भोजन देती है। उस वृद्ध व्यक्ति की करुण कहानी सुनकर पत्थर-दिल आदमी भी पिघल जाता है। यह अत्राण की प्रतिकूल परिस्थिति है। यदि वह इस सचाई को समझ जाता कि अत्राण होना स्वाभाविक है, त्राण आरोपित है तो दुःखी नहीं बनता। हमने लड़के में, पिता-माता में तथा अन्यान्य व्यक्तियों में त्राण माना है । यह वास्तविक नहीं है, केवल आरोपणमात्र है । व्यावहारिक सचाई : वास्तविक सचाई अत्राण व्यक्ति यह भी सोचता है कि मेरी अपार संपत्ति त्राण बनेगी। मैंने जिन-जिन लोगों की सहायता की है, जिन्हें दुःख से उबाग है, वे तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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