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अहिंसा के अछूते पहलु साधन कम जरूरी होंगे। कम साधन की जरूरत होगी तो प्राप्ति का साधन अपने आप शुद्ध बन जाएगा। सुख की आकांक्षा प्रचुर है तो साधन भी प्रचुर चाहिए । प्राप्ति केवल शुद्ध ढंग से हो, यह संभव लगता नहीं है। यद्यपि हमारा प्रयत्न यही होता है कि प्राप्ति के साधन शुद्ध हों, अर्जन के साधन शुद्ध हों, अनैतिक न हों। हमारे भीतर सुख की आकांक्षा विद्यमान है । सुख चाहिए, एक को चाहिए, दूसरे को चाहिए और तीसरे को चाहिए, सबको चाहिए। यह वृत्ति अपना काम कर रही है और हम प्रतिबंध लगाना चाहें कि तुम साधन शुद्ध रखोगे और जो प्राप्त करना है बिलकुल सही तरीके से प्राप्त करोगे। कब संभव होगा ? भीतर से पानी का वेग आ रहा है । पाल कमजोर है। वह वेग उस पर ऐसा धक्का मारेगा कि पाल टूट जाएगी। जब तक हम मूल बात को नहीं पकड़ेंगे, सुख की आकांक्षा को कम नहीं करेंगे तब तक साधन-शुद्धि की बात का कोई सार्थक परिणाम नहीं आएगा। कृत्रिम साधनों का अस्वाभाविक प्रयोग घातक
नैतिकता का पहला बिन्दु है संयम । सुख की आकांक्षा का संयम । मन में सुख पाने की जो आकांक्षा है, उसका संयम करो। सुख की अनुभूति तो होती है पर वह बहुत काम की नहीं है। एक आदमी गर्मी के मौसम में वातानुकूलित मकान में जाकर बैठ जाता है और सोचता है-पहले कितने दुःख में था और अब कितने सुख में आ गया। उसे सुख की अनुभूति होती है, अच्छा भी लगता है पर वह बहुत काम का नहीं है। जिस व्यक्ति ने निरंतर वातानुकूलन में रहना पसंद किया है, उसने साथ-साथ बीमारियां भी पाली हैं । वातानुकूलन में शरीर की जो रोग-प्रतिरोधक क्षमता है, वह कम होने लग जाती है । जो व्यक्ति गर्मी और सर्दी को सह सकता है उसमें जितनी रोग-प्रतिरोधक क्षमता होगी, उतनी वातानुकूलित में रहने वाले में नहीं होगी। जो आदमो सर्दी-गर्मी आदि प्राकृतिक आपदाओं को सहन नहीं करता, उसके बचाव के लिए हमेशा कृत्रिम साधनों का प्रयोग करता है, उसका परिणाम अच्छा नहीं होता । रोग विशेषज्ञों की परिषद् में एक कार्डियोलोजिस्ट ने कहा-जिसमें कृत्रिम खाद दी जाती है. वे चीजें खाना हार्ट के लिए बहुत हानिकारक है । बड़ा अजीब है विज्ञान का जगत् । पहले कृत्रिम खाद का प्रचार किया जाता है। अधिक उपजाओ, खाद का प्रयोग करो। कुछ समय के बाद कहा जाता है-इसे मत खाओ। कृत्रिम खाद से उपजे पदार्थ मत खाओ, हार्ट कमजोर हो जाएगा। किसकी बात माने, कृत्रिम खाद देने वाली बात माने या न देने वाली बात को मानें। जब प्रकृति के साथ अतिरिक्त छेड़छाड़ होती है और अधिक कृत्रिम साधनों का अस्वाभाविक प्रयोग होता है, वह
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