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१८. नैतिकता और संयम
नैतिकता : दो दृष्टिकोण
___ सारे संसार का अध्ययन करें तो मानव व्यवहार में एकरूपता दिखाई नहीं देती। किसी भूखंड में मानवीय व्यवहार एक प्रकार का है और किसी भूखंड में मानवीय व्यवहार दूसरे प्रकार का है। यह नैतिकता की एक बहुत बड़ी समस्या है। हिन्दुस्तान में एक प्रकार का व्यवहार मिलता है। योरोप और अमेरिका में दूसरे प्रकार का व्यवहार मिलता है। वहां छोटी-छोटी बात के लिए अनैतिक आचरण नहीं होता। मिलावट करना, किसी की चीज उठा लेना, इस प्रकार की अनैतिकता वहां नहीं मिलती। जो क्रय-विक्रय के लिए जाता है वह पूरा दाम चुका देता है। एक दूसरे पर विश्वास होता है, भरोसा होता है। ऐसा लगता है-विदेशी बाजारों में विश्वास ज्यादा चलता है। वर्तमान में भारत की जो स्थिति है, इसमें अविश्वास ज्यादा चल रहा है। कोई किसी पर भरोसा नहीं करता। अगर एकान्त में किसी की चीज पड़ी मिल जाए तो व्यक्ति उसे उठा लेगा। मिलावट भी चलती है और चोरी भी। यह अन्तर क्यों ? क्या कारण है ? क्या यह माने कि वहां धर्म ज्यादा है, यहां धर्म कम है ? यदि धर्म और नैतिकता का कोई संबंध है तो इस विषय में खोज करनी होगी, अनुसंधान करना होगा।
योरोप और अमेरिका में सत्ता और साम्राज्य स्थापित करने की जितनी भावना प्रतीत होती है उतनी भारत में नहीं है । वहां पूरी मानव जाति के संहार के लिए तैयारियां की हुई हैं। कुछ ही घंटों में पूरी मानव जाति को समाप्त किया जा सकता हैं । हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है । आज भी भारत का यही निर्णय है-अणुअस्त्रों का निर्माण नहीं करेंगे। इस संदर्भ में देखें तो यहां नैतिकता बहुत अच्छी लग रही है और वहां नैतिकता की कमी प्रतीत हो रही है। बहुत जटिल समस्या है नैतिकता की। पूरे भूखण्ड में मनुष्य का व्यवहार एक जैसा नहीं। अलग-अलग भूखण्डों में अलग-अलग प्रकार के व्यवहार बन गए । इसका कारण क्या है ? नैतिकता की कसौटी : संयम
नैतिकता के साथ कुछ बातें जुड़ी हुई हैं। उनमें पहली बात है— संयम । संयम के बिना नैतिकता की कल्पना नहीं की जा सकती । अणुव्रत आन्दोलन का घोष है-संयमः खलु जीवनम्-संयम ही जीवन है । हमारी जो नैतिकता की
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