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________________ नैतिकता और मन का खेल १५१ चंचलता में निहित है अनैतिकता का बीज नैतिक विकास के लिए मन की चंचलता को कम करना बहुत जरूरी है। यह नहीं कहा जा सकता कि समाज का हर आदमी मन से परे चला जाएगा। साधक के लिए कहा जा सकता है कि वह मन के खेलों को छोड़ देगा और शुद्ध चेतना की भूमिका में चला जाएगा । सामाजिक प्राणी समाज का जीवन जीता है, समुदाय में रहता है और व्यवहार में जीता है । वह व्यवहार की भूमिका पर जीवन की यात्रा चलाता है । वह मन के खेल से परे चला जाए, मनोतीत हो जाए-प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह संभव नहीं होगा। मन की जिस मात्रा में चंचलता बढ़ी है। उसे कम किया जा सकता है। जैसेजैसे चंचलता कम होगी वैसे-वैसे अनैतिकता भी कम होती चली जाएगी। जैसे-जैसे दवा काम करेगी वैसे-वैसे घाव की जलन भी कम होती चली जाएगी। मन में एक जलन पैदा हो गई, दुःख पैदा हो गया और अनैतिकता का स्रोत फूट पड़ा। चंचलता दुःख पैदा करती है और दुःख अनैतिकता को पैदा करता है। आदमी दुःख को सहन नहीं कर सकता, वह दुःख को मिटाना चाहता है । जैसे-तैसे मिटाता है तो अनैतिकता आती है । यदि चंचलता को कम किया जाएगा तो दुःख की मात्रा कम हो जाएगी। जैसे ही चंचलता कम होती हैं, दुःख का संवेदन कम हो जाता है। यह सारा प्रमाणित किया जा सकता है, यांत्रिक स्तर पर एक ग्राफ चला कर बताया जा सकता हैं। जितनी चंचलता उतना दुःख और जितना दुःख उतनी ही अनैतिकता । जितनी-जितनी मन की एकाग्रता उतना-उतना. सुख और उतनी-उतनी नैतिकता । यह एक नियम बन सकता है, व्यप्ति बन सकती है। अगर इस नियम के आधार पर हम चिंतन करें तो ध्यान का मूल्य समझ में आएगा। ध्यान का बहुत मूल्य है। केवल मानसिक तनाव को मिटाने के लिए ही नहीं किन्तु मन में जो अनैतिकता की भावना जागती है, उसे कम करने के लिए भी मन की चंचलता को कम करना बहुत आवश्यक है.। मैं समझता हूं समाज जिस दिन यह सचाई समझ पाएगा, अनैतिकता की समस्या का समाधान सूत्र हमारे हाथ आ जाएगा और इसका जीवन में प्रयोग किया गया तो नैतिकता की संभावना बहुत बढ़ जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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