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मैतिकता और संयम
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प्राणशक्ति है, जीवनी-शक्ति है, वह संयम है। जहां यह प्राणशक्ति नहीं है वहां नैतिकता नहीं हो सकती। संयम बहुत कठोर शब्द है। प्रिय नहीं है । आदमी को जितना सुख प्रिय है उतना संयम प्रिय नहीं है । कुछ चीजें प्रिय होती हैं, पर हितकर नहीं होतीं। कुछ चीजें हितकर होती हैं, पर प्रिय नहीं होती। संयम भी वैसा ही है। वह हितकर तो है पर प्रिय नहीं है। असंयम जितना प्रिय है उतना हितकार नहीं है। पर संयम बिलकुल प्रिय नहीं है। यहीं नैतिकता उलझ जाती है । यह कहा जा सकता है-नैतिकता के बिना यदि समाज स्वस्थ नहीं रह सकता तो संयम के बिना नैतिकता भी स्वस्थ और सप्राण नहीं बन सकती । संयम होगा तभी नैतिकता की कल्पना की जा सकेगी। उसके अभाव में नैतिकता आकाशकुसुम जैसी बनी रहेगी। ज्ञान ही धर्म है
यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात संयम प्रधान व्यक्ति थे । संयम पर उनका बहुत बल था। उन्होंने धर्म की जो परिभाषा की, वह बड़ी विचित्र थी। उन्होंने कहा-ज्ञान ही धर्म है। ज्ञान से भिन्न कोई धर्म नहीं है। उनके सामने प्रश्न प्रस्तुत हुआ-ज्ञान धर्म कहां है ? बहुत सारे लोग जानने हैं पर वैसा करते नहीं हैं। ज्ञान और आचरण की दूरी बनी हुई है। धर्म तो आचरण है। आदमी जानता है पर करता नहीं है। फिर ज्ञान धर्म कैसे हुआ ? सुकरात ने कहा-वह ज्ञान-ज्ञान नहीं, जिसका आचरण नहीं है । वह अयथार्थ ज्ञान है, मिथ्या-धारणा है । वह सही ज्ञान नहीं है, भ्रान्ति है। बहुत बार आदमी भ्रान्त ज्ञान करता है। भ्रान्ति में उलझ जाता है। भ्रान्ति में सचाई का पता ही नहीं चलता। वह यथार्थ को पहचान ही नहीं पाता।
एक युवक किसी संघर्ष में उलझ गया, गोली लगी और वह मर गया। 'घर वालों को सूचना दी गई। लाश को लेकर गांव में पहुंचे। रास्ते में एक
आदमी मिला। उसके सारे शरीर को देखकर बोला-बहुत अच्छा हुआ। गोली लगी पर आंख बच गई। अगर आंख पर लग जाती तो बहुत बुरा होता । मर तो गया, पर आंख बच गई। यह अच्छा हुआ। कितना भ्रान्त
। भ्रान्त ज्ञान होता है अयथार्थ ज्ञान । अगर ज्ञान यथार्थ है तो उसका आचरण होगा । ज्ञान और आचरण को अलग नहीं किया जा सकता। मोक्ष का साधन क्या?
___आगम का एक शब्द है-परिज्ञा। परिज्ञा का अर्थ है जानना पर केवल जानना ही नहीं है। परिज्ञा के दो अर्थ हैं-जानना और छोड़ना। ज्ञ परिज्ञा है जानने वाली परिज्ञा और प्रत्याख्यान परिज्ञा है हेय को छोड़ने वाली परिज्ञा, आचरण करने वाली परिज्ञा । दोनों को अलग नहीं किया जा
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