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नहीं, बिलकुल नहीं खेलता । चोरी करते हो ?
नहीं, चोरी भी नहीं करता । मैं सेठ का लड़का हूं, चोरी क्यों करूं ? शराब पीते हो ?
नहीं, शराब को मैं छूता ही नहीं । मैं जैन कुल में पैदा हुआ हूं । शराब को कैसे छू सकता हूं ।
वह सब कुछ अस्वीकार करता चला गया ।
मित्र ने पूछा- बताओ ! तुम्हारे भीतर कोई बुराई है क्या ?
लड़के ने कहा – एक बुराई है, मैं झूठ बोलता हूं ।
जब तक यह एक बुराई है तब तक वह न तो जुआ खेलता है, न शराब पीता है और करता भी है तो सच नही बोलता । कोई बुराई सिद्ध नहीं हो सकती । वह सबको अस्वीकार करता चला जाएगा। जब तक मूल बुराई पकड़ में नहीं आएगी, समाधान नहीं होगा । मूल बुराई पकड़ में आ गई तो
सब आ गया ।
अहिंसा के अछूते पहलु
मित्र ने कहा- तुम मेरी एक बात मानो । यह संकल्प करो कि मैं कभी झूठ नहीं बोलूंगा । तुम चाहे शराब पीओ, जूआ खेलो, पर झूठ नहीं बोलोगे ।
उसने कहा-अच्छा ! मैं दृढ़ संकल्प करता हूं कि एक माह तक झूठ नहीं बोलूंगा ।
सांझ का समय हुआ और वह शराब पीने को जाने लगा । पिता ने पूछ लिया- कहां जा रहे हो ?
उसने कहा- शराब पीने जा रहा हूं ।
पिता ने कहा- शराब पीते हो ? वह शर्मिंदा हुआ और बैठ गया । दूसरा प्रसंग आया ।
पिता ने पूछा- कहां जा रहे हो ?
जुआ खेलने जा रहा हूं ।
पिता बोला- जुआ खेलते हो ?
पिता चार-पांच दिन यही प्रश्न पूछता रहा और उसने हर बार सही उत्तर दिया । उस लड़के की आंखें शर्म से भर गईं, सुप्त चेतना जाग गई । उसने सोचा- मैं किस कुल में जन्मा हूं और कितनी बुराइयों में पहुंच गया हूं, फंस गया हूं ?
उसका सारा चरित्र बदल गया । एक झूठ छूटा, सारी बुराइयां
छूट गईं।
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