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नैतिकता और मन का खेल
१४६ जब तक मूल बात पकड़ में नहीं आएगी तब तक अनैतिकता की समस्या, अनैतिक व्यवहार समाप्त नहीं होगा। जब तक अनैतिकता विद्यमान रहेगी, दो नंबर के खाते भी चलेंगे और बुराइयां भी होती रहेंगी। मूल समस्या है मानसिकता
मूल समस्या है मानसिकता, मन के खेल । जब तक हम समाज को मन के खेल से नहीं उबार पाएंगे तब तक उसे अनैतिकता की समस्या से नहीं उबारा जा सकता। हर आदमी मन का खेल खेल रहा है। मन के परे जाने की बात कोई नहीं सोच रहा है। मन के खेल की समाप्ति तब संभव है जब चंचलता को कम किया जाए। हम मन से परे जाएं । यह एक नया काम है। हमने मन की एक सीमा बना रखी है, एक घेरा बना रखा है। हम मन के प्रकल्पित घेरे में जीते हैं। जब तक इस घेरे और किलेबंदी को नहीं तोड़ा जाएगा, नैतिकता की बात समझ में नहीं आएगी। नैतिकता को संभावना मन से परे
ध्यान का प्रयोग मन से परे जाने के लिए है। प्रेक्षा का मतलब है देखना। देखना मन का काम नहीं है। जब तक मन की स्थिति में रहेंगे तब तक यह संभव नहीं होगा । देखना हमारे चित्त का काम है, शुद्ध चेतना का काम है। उस चेतना का काम है, जिसमें राग और द्वेष का परिणाम नहीं है। राग-द्वेष सहित चेतना से देखना संभव नहीं होता। वहां मूर्छा का साम्राज्य हो सकता है। जिस क्षण चेतना में राग और द्वेष का परिणाम नहीं होता, उस क्षण का नाम है—प्रेक्षा, देखना या दर्शन। हम स्वयं को रोज देखते हैं, शरीर को रोज देखते हैं। कब नहीं देखते ? आदमी शीशे के सामने खड़ा होता है और शरीर को देखता है पर वह देखना प्रेक्षा नहीं है। वह रागात्मक देखना है । आदमी कांच के सामने जाकर खड़ा होता है और पूरा पागल नहीं होता है तो आधा पागल तो बन ही जाता है । बच्चा ही नहीं, समझदार आदमी भी कांच के सामने जाकर आधा पागल बन जाता है। कभी हाथ को उठाता है और कभी मुंह को टेढ़ा करता है । वह सोचता है-मैं कैसा लग रहा हूं। इसी नखरे-नखरे में वह आधा पागल बन जाता है। यह रागात्मक परिणाम है। केवल समता, तटस्थता और मध्यस्थता का नाम है प्रेक्षा । जब यह स्थिति आती हैं तो हम मन के परे चले जाते हैं।
चक्रवर्ती भरत ने भी कांच में अपने आपको देखा था। मनुष्य भी कांच में देखता है । फर्क क्या है ? भरत कांच में देखते-देखते केवली बन गए और बहुत सारे लोग कांच में देखते-देखते पागल बन जाते हैं। एक ही स्थिति में यह अंतर क्यों आया ? वही व्यक्ति और वही कांच । एक केवली बन जाए और एक पागल बन जाए । अन्तर क्या है ? जब तक मन के खेल में आदमी
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