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________________ अहिंसा के अछूते पहलु और जिसके मन नहीं हाता उसमें भी इच्छा होती है। एक पेड़-पौधे के भी इच्छा होती है और एक विकसित प्राणी के भी इच्छा होती है । इच्छा हमारी चेतना के साथ होने वाला एक सार्वभौम धर्म है । प्रत्येक प्राणी में इच्छा होती है । ऐसा कोई भी प्राणी नहीं । जिसमें इच्छा न हो। वीतराग होने पर भी जीवन चलाने की इच्छा होती ही है। इच्छा का संबंध बहुत गहरा है। एक सूत्र दिया गया-इच्छा का परिष्कार करो। जो अचेतन इच्छा है उसका परिष्कार करना नैतिक होने के लिए बहुत जरूरी है। इच्छा का अपरिष्कार भी बड़ी बाधा है। अपरिष्कृत इच्छाएं आदमी को अनैतिक बनाती हैं। जब इच्छाएं प्रबल हो जाती हैं तो उनका भार मन को ढोना पड़ता है। '. इच्छा और मन का बहुत गहरा संबंध है। मन का एक काम है चिंतन, दूसरा काम है कल्पना और तीसरा काम है स्मृति । मनुष्य निरन्तर चिन्तन करता रहता है, अतीत की स्मृति में डूबा रहता है, भविष्य के ताने-बाने बुनता रहता है । प्रश्न होता है--मनुष्य के मन में कल्पना क्यों पैदा होती है । मनोविज्ञान की दृष्टि में कल्पना इच्छा की अभिव्यक्ति करती है। कल्पना का मनोवैज्ञानिक अर्थ हैं इच्छा की अभिव्यक्ति । इच्छा पैदा हुई और उसे प्रगट करने के लिए फिर इच्छा पैदा हुई । चिंतन को मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक आयाम दिए गए हैं। इनमें दो मुख्य आयाम हैं—साहचर्य चिंतन और निर्देशक चिंतन । साहचर्य चिंतन का एक स्वरूप है- कल्पना । आदमी कल्पना करता है। अपनी एक इमेज बना लेता है कि मैं ऐसा हूं। एक आदमी से कहा गया-भाई ! तुम्हारे घर की ऐसी स्थिति नहीं है और इतना कर्ज ले लिया, इतना खर्च किया, अब तुम्हारी आने वाली पीढ़ी तक को इसे भुगतना पड़ेगा। वह बोला-क्या करूं? हमारे परिवार का गरिमापूर्ण स्थान रहा है, प्रतिष्ठा रही है। उसे मैं खंडित कैसे करूं ? उसने प्रतिष्ठा का एक ढांचा खड़ा कर लिया। सबने ऐसा किया है और मैं ऐसा नहीं करूंगा तो समाज क्या कहेगा। जैसे-तैसे चाहे ऋण लेकर भी करें पर उस प्रतिष्ठा को बनाए रखना होता है। यह एक कल्पना है, साहचर्य चिंतन है । मन के खेल तीन शब्द आते हैं-दिवास्वप्न, मनोविलास और स्वप्न । मनोविलास जिस आदमी का स्वभाव होता है। वह केवल मन से कल्पनाएं खड़ी करता रहता है, हवाई किले बनाता रहता है, दिवास्वप्न लेता रहता है। सोता नहीं है, जागते हुए स्वप्न लेता है और ऐसी कल्पनाएं करता है जिन्हें शेखचिल्ली का घड़ा कहा जाता है। व्यक्ति में अतृप्त दमित इच्छाएं होती हैं और वे समय-समय पर अभिव्यक्त होकर विचित्र व्यवहार और आचरण करती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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