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________________ नैतिकता और अचेतन मन १४३ मुवक्किल बोला--वकील साहब ! आपने मेरी नौका पार लगा दी। बड़ा जटिल काम था । असंभव जैसा लग रहा था । आपने बहुत श्रम किया और हम विजयी बन गए। आपको मैं किन शब्दों में धन्यवाद दूं। मेरे पास कोई शब्द नही हैं। वकील ने कहा-शब्दों को खोजने की कोई आवश्यकता नहीं है, बस रुपया दो। शब्दों से वकील संतुष्ट नहीं होता । उसे शब्दों की जरूरत नहीं है। उसे जरूरत है रुपयों की। वे मिल जाए तो और कुछ भी देने की जरूरत नहीं है। अस्वीकार करना सीखें हमारी समस्या है-जो भी समस्या पैदा होती है हम उसे स्वीकार कर लेते हैं, अपना लेते हैं। हमें अस्वीकार की बात को समझना है। त्याग का अर्थ छोड़ना नहीं है । त्याग का अर्थ है अस्वीकार । स्वीकारा ही नहीं उसको । जब स्वीकारा ही नहीं तो वह आएगा कहां से। जब दरवाजा पहले ही बंद कर दिया तो पाहुना आएगा ही कहां से । पाहुनें को बुला लिया तो वह पक्का पाहुना बन जाएगा। जब हम इच्छा को स्वीकार लेते हैं तब वह पक्का पाहुना बन जाता है और सताता रहता है। विनिवर्तना का अर्थ है अस्वीकार । भगवान महावीर से पूछा गयाविनिवर्तना से जीव को क्या मिलता है। उत्तर मिला--पहले जो बंधन किया है उसकी निर्जरा हो जाती है। यानी जो इच्छाएं हमने अचेतन में डाल दी हैं, जो संस्कार और जो आदतें अचेतन में चली गई हैं उन सब की निर्जरा हो जाती है, शोधन हो जाता है, सफाई हो जाती है। ___ मनोविज्ञान में माना गया है-चेतन और अचेतन चित्त में अदलाबदली होती है। चेतन की बात अचेतन में चली जाती है और अचेतन की बात उभर कर फिर चेतन में चली आती है। यह अदला-बदली का चक्र निरंतर चलता रहता है । अगर हम विनिवर्तना की बात सीख जाते हैं तो अदला-बदली को रोक सकते हैं। चेतन को बाहर की घटना से प्रभावित न होने दें तो अदला-बदली का क्रम बंद हो जाएगा। जब भीतर कोई रसद नहीं पहुंचेगी तो वह अपने आप शांत हो जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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