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________________ १४२ हंसा के अछूते पहलु पीऊंगा । आपने बहुत बढ़िया सिगरेट मुझे दी है । घरवालों का कलह भी शान्त हो गया और समस्या भी शांत हो गई । उसने नई सिगरेट पीना शुरू कर दिया । यह तब संभव बना जब नया और अच्छा विकल्प सामने आया । बच्चा मिट्टी खाता है तो माता उसे वंशलोचन देती है । बच्चा उसे मिट्टी मानकर खाता है । वंशलोचन हानिकारक नहीं होता । बच्चे की मिट्टी खाने की आदत छूट जाती है । नए विकल्प को खोज एक नया विकल्प सामने आता है और विशेष आनंद का अनुभव होता है तो वृत्ति में परिवर्तन आ जाता है, इच्छा बदल जाती है । इच्छा के परिष्कार का और अचेतन इच्छा के परिष्कार का दूसरा साधन है नए विकल्प की खोज । जिस वृत्ति में जो आनंद आ रहा है उससे अधिक आनंद की खोज । खाने में स्वाद आता है किन्तु जिस व्यक्ति ने खेचरी मुद्रा का अभ्यास कर लिया, उसे जो रस और आनंद आएगा, फिर उसका खाने का रस छूट जाएगा, खाने की लोलुपता छूट जाएगी । जिसने खेचरी मुद्रा से स्रवित होने वाले रस का आनंद ले लिया, उसका खाने का स्वाद समाप्त हो जाएगा । जिस व्यक्ति ने अन्तर- यात्रा का अच्छा प्रयोग कर लिया, उसका जो काम - रस है, काम वासना का रस है, वह कम होने लग जाएगा, हल्का पड़ने लग जाएगा । जब तक कोई बड़ा आनंद हम नहीं ले लेते तब तक छोटा आनंद छूटता नहीं है । जिस इच्छा के साथ आनंद जुड़ा हुआ है, वह इच्छा छूट नहीं सकती । वह तभी छूट सकती है जब उससे बड़ा आनंद हमें मिलने लग जाए । इच्छा का शमन विनिवर्तना से तीसरा प्रयोग है विनिवर्तना का । उसका निवर्तन करना । अपने आपको उससे हटा लेना । उससे अलग कर देना । यह पृथक्करण है, भेद-विज्ञान है, अपने आपको भिन्न अनुभव करना है । मन में इच्छा पैदा हुई और हम अभ्यास करें कि मैं तो इच्छा नहीं हूं। अगर मैं इच्छा होता तो इच्छा निरंतर बनी रहती । इच्छा पैदा हुई है तो मेरे पास आई क्यों ? आई है और पैदा हुई है । इसका अर्थ है - यह मेरे से भिन्न हैं । मैं इच्छा नहीं हूं । मैं चेतना हूं और मैं एक उपयोग हूं । इच्छा मुझसे भिन्न है । उससे भेद का अनुभव करें। विनिवर्तना इच्छा को बिल्कुल शान्त कर देती है । उससे इच्छा का शमन हो जाता है । उसका उभार भी कम होने लग जाता है । हमारी एक खोज चलती है इच्छा की पूर्ति में, दूसरी खोज चलती है इच्छा की विनिवर्तना में। दोनों खोजें अलग-अलग चलती हैं । केश बड़ा जटिल था । वकील ने केश लड़ा और वह केश जीत गया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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