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नैतिकता और अचेतन मन
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इच्छा-शोधन का सूत्र : आनंद की खोज
दूसरा सूत्र है-आनन्द के स्रोत की खोज । इच्छा के साथ आनंद का भाव जुड़ा रहता है । आदमी आनंद के क्षणों को छोड़ना नहीं चाहता । प्राचीन साहित्य में कहा गया- वर्तमान में जो सुख मिला है, वर्तमान में जो भोग मिला है, वर्तमान में जो सुविधा मिली है, वर्तमान में जो पदार्थ मिले हैं उन्हें छोड़ते हो और संन्यासी बनते हो, त्यागी बनते हो, यह तुम्हारा प्रयत्न वैसा ही प्रयत्न है कि आज की परोसी हुई थाली को छोड़कर कल की थाली की आशा करना । वैसी ही मूर्खता है कि खड़ी फसल को काटकर रेगिस्तान में बीज बोना।
एक मुस्लिम युवक ट्रेन में सिगरेट पी रहा था। परिवार के लोगों ने कहा-तुम सिगरेट को छोड़ दो, यह बहुत नुकसान करती है । फेफड़ा खराब होता है, केंसर की बीमारी हो जाती है । तुम छोड़ दो। वह बोलामैं मूर्ख हूं क्या ? मैं नहीं छोडूंगा। आप मुझे क्या समझाते हैं। घंटा भर संघर्ष चलता रहा। जीवन-विज्ञान के प्रशिक्षक उसी डिब्बे में बैठे थे। वे उनके संघर्ष को देखते रहे, सुनते रहे। जब वह थोड़ा थमा तो प्रशिक्षक ने युवक से कहा-भाई ! तुम्हारी बात ठीक है। तुम सिगरेट तो नहीं छोड़ सकते पर मैं तुम्हें इससे भी बढ़िया सिगरेट पीना सिखा दूं तो?
आदमी बढ़िया चाहता है। घटिया कोई भी नहीं चाहता।
वह युवक बोला- यदि बढ़िया सिगरेट मिल जाएगी तो इसको छोड़ दूंगा।
प्रशिक्षक ने कहा-आओ, मेरे पास बैठो। उसे बुला लिया और कहा कि तुम जब सिगरेट पीते हो, कश खींचते हो तो तुम्हे बड़ा मजा आता होगा।
उसने कहा- हां।
प्रशिक्षक ने कहा-देखो, तुम एक नथुने से श्वास लो और दूसरे से निकालो, फिर दुबारा उस नथुने से सांस लो और दूसरे से निकालो। यह अनुभव करो कि मैं सिगरेट के कश ले रहा हूं और कश को छोड़ रहा हूं।
उसने कहा-ऐसे नहीं। मैं इसे करके देखूगा । वह अपने स्थान पर चला गया। उसने दीर्घश्वास और समवृत्ति श्वास का प्रयोग किया। कुछ क्षणों के बाद आकर बोला, यह तो बहुत अच्छा है । यह सिगरेट बहुत बढ़िया है। वह दीर्घश्वास और समवृत्ति श्वास का प्रयोग एक घंटे तक करता रहा। एक घंटे के बाद बोला- मैं शपथ लेता हूं, अब कभी सिगरेट नहीं पीऊंगा।
प्रशिक्षक ने कहा-ऐसे नहीं, कुरान की शपथ से कहो तो मैं मान । उसने कहा, कुरान की शपथ से कहता हूं कि अब मैं सिगरेट नहीं
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