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________________ १४० अहिंसा के अछूते पहलु आंगन में ले आया। अपनी मां के सामने लाकर बोला, मां! आज मुझे सफलता मिली है। यह वह दुश्मन है जिसने मेरे भाई को मारा था । अब पह मेरे हाथ में आया है। मैं तुम्हारी साक्षी से इसका गला काटूंगा। उसने हाथ में तलवार ली। वह बेचारा कांप रहा है। उसने सोचामैंने अपराध किया है। इसके भाई को मारा है। अब इसकी पकड़ में आ गया। बचने का कोई उपाय नहीं है। तत्काल उसे एक बात सूझी। पास में कोई तिनका पड़ा था। उसे उठाया और मुंह में डालकर बोला"मैं तेरी गाय हं।" मां वहीं खड़ी थी। मां बोली, बेटा ! बस, अब कुछ मत करना। तलवार नीचे रख दो। वह बोला, क्यों ? मैंने इतना पसीना बहाया, खून बहाया और इसके लिए चक्कर लगाता रहा, न खाने की सुध और न पीने की सुध । न नींद ली। कुछ भी नहीं किया। इतना श्रम कर इसे पकड़ा और तुम कहती हो कि तलवार नीचे रख दो। मां बोली, सब जगह क्रोध को सफल नहीं किया जा सकता। कुछ जगह क्रोध को विफल भी करना होता है। सफल मत करो। अब यह गाय बन गई है, क्योंकि इसने तिनका मुंह में ले लिया है । अब इसे मारा नहीं जा सकता। जरूरी है शोधन __ क्रोध को सब जगह सफल करना आवश्यक भी नहीं है और अच्छा भी नहीं है। स्थिति या संदर्भ हमें देखना होता है कि कौन-सी इच्छा कब और कैसे पूरी करनी चाहिए ? जब हम इच्छा पर अनुप्रेक्षा करते हैं तो हमारी बहुत सारी दृष्टियां अपने आप परिमार्जित हो जाती हैं। जैसे करेला बहुत कड़वा होता है । इसका साग बनाने वाली महिला जानती है कि इसका साग ऐसे ही नहीं बनाया जाता। पहले इसकी कड़वाहट को दूर करना होता है। विष का शोधन किया जाता है। संखिया भी दिया जाता है दवा के रूप में । पहले उसका शोधन किया जाता है। पारा बहुत उपयोगी है पर सीधा कच्चा पारा कोई खा नहीं सकता। गंधक कोरा खा ले तो शरीर फूट जाएगा। पारे का भी शोधन होता है और गंधक का भी शोधन होता है। ऐसे ही इच्छा का शोधन करना भी जरूरी है । अगर शोधन नहीं करते हैं तो इच्छा जहर बन जाती है । इच्छा शोधन करने का एक सूत्र है अनुप्रेक्षा । इच्छा एक पारा है । इच्छा एक गंधक है। इच्छा एक संखिया है। उसको सीधा जिसने पूरा कर लिया वह शारीरिक हानि भी उठायेगा, मानसिक हानि भी उठाएगा और खतरे में भी डूबता चला जाएगा। इच्छा को पूरा करने का यानी सेक्स की इच्छा को पूरा करने का परिणाम आया है एडम की बीमारी, जो आज की बीमारियों में सबसे भयंकर बीमारी है। यह एक उच्छृखल इच्छा की पूर्ति का परिणाम है । इच्छा के शोधन और परिष्कार का महत्त्वपूर्ण सूत्र है अनुप्रेक्षा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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