________________
अहिंसा के अछूते पहलु. लेता है। यह होता है स्नायविक अभ्यास । इच्छा को पूरा करने का अर्थ है-एक स्नायविक आदत को डाल देना। उलझन दोनों ओर
एक प्राकृतिक आदत होती है और एक अजित आदत होती है । हमारे स्नायुओं को हमने एक अभ्यास दे दिया और वह आदत बन गई। उसे बदलना बड़ा कठिन हो जाता है। पूरा करना भी एक समस्या है और पूरा न करना भी एक समस्या है। अगर पूरा न करें तो वह चेतन की दमित इच्छा अचेतन में चली जाती है और बार-बार उभरती रहती है। जैसे ही चिंतन मिला, निमित्त मिला, इच्छा उभरती है और वह सताती रहती है। दोनों ओर समस्याएं हैं। एक समस्या पर तो अधिक ध्यान दिया गया कि इच्छा का दमन अच्छा नहीं है किन्तु दूसरी समस्या पर कम ध्यान दिया गया कि हर इच्छा को पूरा करना भी अच्छा नहीं है। दोनों ओर से उलझन आ गई।
एक आदमी जा रहा था जंगल में। पीछे से आवाज आईआगे मत जाओ। पूछा-क्यों ? उत्तर मिला, आगे बाघ खड़ा है। सोचा, वापस चला जाऊं गांव में । वापस चला, नदी के पास आया, जो बीच में पड़ती थी। दूसरे आदमी ने कहा-आगे मत जाओ, आगे बाढ़ आ रही है । एक ओर बाघ आ गया और दूसरी ओर नदी की बाढ़ आ गई। वह बीच में ही रह गया ।
हमारी स्थिति भी यही बन रही है। हम इच्छा को पूरा करें तो भी खतरा है और न करें तो भी खतरा है। इस समस्या पर अध्यात्म के आचार्यों ने, योग के आचार्यों ने अनुसंधान किया, कई प्रयोग किए और कुछ मार्ग सुझाए। मैं समझता हूं-वे मार्ग आज भी बहुत महत्त्वपूर्ण हैं और मनोविज्ञान के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए बहुत उपयोगी हैं।' उनमें एक मार्ग है- अनुप्रेक्षा का। शास्त्रीयभाषा में अनुप्रेक्षा का प्रयोग करने से तीव्र विपाक मन्द विपाक बन जाता है। एक तीव्र लालसा पैदा हुई-काम की लालसा, सेक्स की लालसा, भय की वृत्ति, धन की लालसा या भोजन की आसक्ति । प्रश्न उठा कि ऐसी स्थिति में क्या किया जाए ? आचार्य ने कहा-अनुप्रेक्षा का प्रयोग करो। अनुप्रेक्षा के अनेक प्रयोग हैं, सूत्र हैं। अनुप्रेक्षा का एक सूत्र है-चिन्तन । उस बारे में चिन्तन करो। सारे पहलुओं पर चिन्तन करो। इसके प्रारम्भ का बिन्दु क्या होगा ? मध्य का बिन्दु क्या होगा और अन्तिम बिन्दु क्या होगा ? किसी भी इच्छा को सहसा स्वीकार मत करो। बहुत सारे लोग इच्छा के अनुसार ऐसा काम कर. डालते हैं, जिसका कोई अर्थ नहीं होता।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org