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________________ नैतिकता और अचेतन मन १३७ या उसका दमन करना । हर इच्छा को पूरा करें--- यह सामाजिक जीवन में संभव नही । कई इच्छाएं ऐसी होती हैं, जिनको पूर्ण नहीं किया जा सकता। उनको पूर्ण करना कभी संभव नहीं। इच्छा पर एक नियंत्रण है समाज की व्यवस्था का । इच्छा पर नियंत्रण है सभ्यता और शिष्टता का। उसका एक सूत्र है - अशिष्ट आचरण नहीं करना चाहिए। कुछ इच्छाएं ऐसी होती हैं, जिन्हे पूरा भी किया जा सकता है । वे पूर्ण हो जाती हैं । एक है अपूर्ण इच्छा, जिसको मनोविज्ञान की भाषा में दमित इच्छा कहा जाता है । इच्छा का दमन कर दिया, उसे पूरा नहीं किया । दमित इच्छा भीतर चली जाती है । अवचेतन में चली जाती है और वह बार-बार उभरती रहती है। वह सामान्य उपायों से निकलती नहीं, मिटती नहीं। इच्छा : दमन या भोग? दमित इच्छाएं, जो अचेतन इच्छाएं बन गईं, अचेतन में चली गईं, वे बार-बार उभरती रहती हैं। प्रश्न यह है कि इच्छा को पूरा करें या उसका दमन करें। पूरा करें यह संभव नहीं । बहुत सारे उस पर नियंत्रण करने वाले तत्त्व हैं और यदि दमित करें तो वह बार-बार उभरती रहती है । आखिर समाधान क्या होगा, कैसे हम उस इच्छा से छुटकारा पा सकेंगे। एक कोई रास्ता खोजना है। 'इच्छा पूर्ण कर लें' यह एक रास्ता है। पर इससे समाज व्यवस्था में उच्छृखलता बढ़ती है। उस उच्छृखलता के दुष्परिणाम भी आते हैं, आए हैं। आज एक छोटे बच्चे के मन में भी यह भावना बन गई कि इच्छा को रोकना नहीं चाहिए, उसे भोग लेना चाहिए, पूरा कर लेना चाहिए। इच्छा को पूरा करना भी एक समस्या है। इच्छा को पूरा करने का अर्थ है-अचेतन इच्छा को और अधिक बलवान बना देना, सशक्त बना देना। जिस इच्छा को भोगा, उस इच्छा का हमारा अभ्यास हो गया। जिसका अभ्यास हो जाता है, उसको टालना बहुत मुश्किल होता है । है। हम नए घर में जाएं, सीढ़ियों पर चढ़े या सीढ़ियों पर से उतरें, वहां सावधानी बरतनी पड़ती है। क्योंकि हम उन सीढ़ियों से परिचित नहीं हैं। उन पर चढ़ने और उतरने का अभ्यास नहीं है। पर पांच-सात दिन चढ़ते रहें और उतरते रहें तो स्नायुओं को अभ्यास हो जाता है। फिर घबराने की कोई आवश्यकता नहीं होती। चाहे आंख मूंदकर सीढ़ियों पर चढ़ जाएं और चाहे उतर जाएं, कोई खतरा नहीं होता। आदमी की बात को छोड़ दें। कोई बैल गाड़ी के जुता हुआ है, दस कोश जाना है । एक दिन, दो दिन, दस दिन जिस रास्ते से गए फिर बैल को हांकने की कोई जरूरत नहीं है। उसे हांकने वाला मजे से सो जाता है, बैल अपने आप मार्ग पर चलता जाता है। कहां रुकना और कहां मुड़ना, वह अपने आप जान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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