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अहिंसा के अछूते पहलु स्वप्न के रूप में उभर कर सामने आती रहती हैं। यंग ने इसका भी प्रतिकार किया। उन्होंने कहा-अचेतन मन केवल दमित इच्छाओं का भण्डार नहीं है। इसमें बहुत सारे अच्छे संस्कार भी हैं। दमित इच्छाए हैं तो साथ-साथ में अच्छाइयां भी हैं। स्वरूप बदल गया। कर्मशास्त्र में हजारों वर्ष पहले इस विषय पर बहुत काम हुआ था। उसके संदर्भ में आज के मनोविज्ञान की समीक्षा करते हैं तो यूंग का मत बहुत अधिक सम्मत बैठता है। जैन आचार्यों ने कर्मशास्त्र के आधार पर दो प्रणालियां निर्धारित की। एक प्रणाली का नाम है औदयिक प्रणाली, जिसे मनोविज्ञान की भाषा में 'रिटमुलेशन ऑफ टेन्सन' कहा जा सकता है। यह आवेशों को उत्तेजना देती है। दूसरी है-क्षायोपशमिक प्रणाली, यह उत्तेजना का विलय करती है, उसे शान्त करती है । औदयिक प्रणाली का प्रवाह और क्षायौपशमिक प्रणाली का प्रवाह निरन्तर बहता रहता है। दो प्रणालियां
हमारे अचेतन में, कर्मशास्त्र की भाषा में सूक्ष्मतम शरीर में संस्कारों का, बंधनों का भण्डार है। एक ओर बन्धन है तो दूसरी ओर बंधन काटने वाली प्रणाली भी है। केवल बंधन की प्रणाली ही नहीं है । बंधन को काटने वाली प्रणाली भी है। दोनों प्रणालियां निरन्तर काम कर रही हैं। इन दोनों प्रणालियों में एक संबंध भी है। औदयिक प्रणाली जब बाहर आती है तब क्षायोपशमिक प्रणाली उस पर नियमन करती है। क्रोध औदयिक प्रणाली का प्रवाह है। किसी आदमी को क्रोध आया। तत्काल क्षायोपशमिक प्रणाली सक्रिय हो जाएगी। वह · कहेगी अभी गुस्सा मत करो, जरा ठहरो, कुछ रुको। कुछ देखो। फिर भी गुस्सा होता है। औदयिक प्रणाली का प्रवाह जब तीव्र होता है, क्रोध उभर आता है। क्षायोपशमिक प्रणाली का उपदेश मिलता है-क्रोध करते हो तो करो पर कम से कम इतना अभी मत करो । इससे बहुत हानि होती है। दोनों संकेत बराबर मिलते रहते हैं । औदयिक प्रणाली प्रबल होती है तो क्षायोपशमिक प्रणाली उस पर नियंत्रण भी रखती चली जाती है और अपने संदेश भी उसके पास पहुंचाती रहती है । दोनों में एक संबंध हो गया। दोनों साथ-साथ चलती हैं, मिलती नहीं हैं। समानान्तर रेखा की भांति अलग-अलग रहती हैं। व्यवहार की भाषा में ऐसा लगता है कि वे एक दूसरे के पूरक का काम करती हैं।
हम ज्यादा काम लेते हैं-चेतन चित्त से । जो इच्छाएं और आकांक्षाएं पैदा होती हैं, वे चेतन चित्त के स्तर पर होती हैं। एक इच्छा के पैदा होने पर हमारे सामने दो विकल्प प्रस्तुत होते हैं- १. इच्छा को पूर्ण करें २. या इच्छा का दमन करें। सामान्यतः दो बातें मानी जाती हैं, इच्छा पैदा करना
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