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________________ इच्छा और नैतिकता व्यक्ति इच्छाओं के संघर्ष में जीते है। यह एक महायुद्ध है, जो दिमाग में निरंतर चलता रहता है । बहुत कम व्यक्ति इस चक्र से बच पाते हैं । ऐसी स्थिति में क्या हम कल्पना कर सकते हैं कि आदमी नैतिक बन सकता है ? अणुव्रती बन सकता है ? बंधन : मोक्ष __ आदमी कितनी बार बंधता है और कितनी बार मुक्त होता है। समस्याओं का उलझना बंधन है और समस्याओं का सुलझना मोक्ष है। हम वर्तमान की बात करें। जिसका इच्छाओं पर अनुशासन नही हैं वह आदमी बंधता है, आगे से आगे बंधता चला जाता है । जिस व्यक्ति का अपनी इच्छाओं पर अनुशासन हो गया; मुख्य इच्छा का चुनाव कर प्रतिद्वन्द्वी इच्छाओं को जिसने पराजित कर डाला, वह खुलता चला जाता है। उसकी सारी समस्याएं सुलझ जाती हैं । शक्ति का स्रोत यह वह बिन्दु है जहां ध्यान के प्रयोग को समझा जा सकता है । ध्यान के बिना एकाग्रता की शक्ति का विकास नहीं होता, निर्विचार चेतना का विकास नहीं होता और उसके बिना इच्छाओं पर अनुशासन करने की शक्ति का विकास नहीं होता। हमारा मनोबल इतना प्रबल हो कि उससे इच्छाओं का नियमन किया जा सके । इच्छा के संघर्ष में हम पराजित न हों, इच्छा को पराजित कर दें। ऐसा होना मनोबल के बिना संभव नहीं है । मनोबल एकाग्रता और निर्विचारता के बिना संभव नहीं होता। यदि हम एक विचार पर दस मिनिट भी टिक सकें तो दस दिन में पता चल सकता है कि शक्ति किसको कहते हैं ? शक्ति कैसे फटती है ? शक्ति के इस स्रोत का स्वयं अनुभव होने लग जाता है। जो व्यक्ति आधा या एक घंटा एक विचार पर टिक पाता है, उसे देवता भी विचलित नहीं कर सकते । परीक्षण मनोबल का __ एक श्रावक था अरहन्नक । देवता उसके पास आकर बोलाअरहन्नक ! तुम धर्म को छोड़ दो। तुम्हें कोई कष्ट नहीं दिया जाएगा अन्यथा मौत के घाट उतार दिए जाओगे । भय और प्रलोभन दोनों दिखाए, पर अरहन्नक अडिग रहा । यह था मनोबल का निदर्शन। ऐसे व्यक्ति भी मिलते हैं, जो तनिक प्रलोभन से डिग जाते हैं, धर्मकर्म छोड़ देते हैं। एक व्यक्ति ने कहा-यह जूठन खा लो। उसने कहा-मैं शुद्धता में विश्वास करता हूं। कैसे खा लूं जूठन को ? प्रलोभन दिखाया गया—यदि जूठन खाओगे तो सोने का कटोरा मिलेगा। उसने कहाजूठन खाने में कौन सा दोष है ? मां बच्चे का जूठन खाती है। बच्चे मां Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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