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________________ १३२ अहिंसा के अछूते पहलु पसंद करता। विद्यार्थी ने कहा- ठीक ही है। जिसके पास जिसकी कमी होती है, वह उसी को चाहता है । ___ सही चीज का चुनाव दुष्कर होता है । प्रश्न है चुनाव का बादशाह ने बीरबल से कहा-अरे बीरबल ! यह क्या ? मेरी सभा के सभी सदस्य सुन्दर हैं, गौर वर्ण वाले हैं। केवल तुम ही असुन्दर हो, काले हो, ऐसा क्यों हुआ? बीरबल बोला-जहांपनाह ! यह ठीक ही हुआ, क्योंकि भगवान् के घर जब बुद्धि और रंगरूप का बंटवारा हो रहा था तब इन सबने रंगरूप को चुना और मैंने बुद्धि को। मैं बुद्धिमान् हो गया और ये रंगरूप वाले हो गए। __ चुनाव का प्रश्न अत्यन्त महत्त्व का प्रश्न होता है । इच्छाओं के संघर्ष में किस इच्छा को चुनना चाहते हैं और किसको पराजित करना चाहते हैं, यह महत्वपूर्ण है । जीवन प्रतिद्वन्द्वी इच्छाओं का रंगमंच है। कभी अचानक सद इच्छाएं जागती हैं, मनुष्य नैतिकता और आध्यात्मिकता की ओर प्रस्थित होने का संकल्प करता है । पर जब प्रतिद्वन्द्वी इच्छाओं का प्रहार होता है तब टिकले वाला ही टिक पाता है। ___ मैं जब प्रवजित हो रहा था तब मेरे साथ ५-६ व्यक्ति और दीक्षित होने वाले थे। मैं अकेला मुनि बना, वे यों ही रह गए । इच्छाओं का ऐसा दबाव आया कि वे सब उनके नीचे दब गए, पराजित हो गए। __जब प्रतिद्वन्द्वी इच्छाओं का प्रहार होना प्रारंभ होता है, अपने लक्ष्य पर या अपनी सद् इच्छा पर अडिग रहना कठिन हो जाता है। इच्छा को बनाए रखना एक समस्या हो जाती है। अनैतिकता का कारण अनैतिकता आज की प्रज्वलित समस्या है। सभी उसके परिणामों को भोग रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति को परिणाम भोगना पड़ रहा है। कहीं भी चले जाएं । सर्वत्र अनैतिकता का बोल बाला है । हर आदमी के मन में शिकायत है और हर आदमी उसे भोग रहा है । जो शिकायत करता है वह भी अनैतिक आचरण करता है । प्रश्न होता है कि बुराई को जानते हुए भी आदमी उसका आचरण क्यों करता है ? अनजान आदमी बुराई करता है तो माना जा सकता है कि वह अज्ञानवश वैसा कर रहा है, पर बुराई को जानने वाला वैसा करता है तो बात समझ में नहीं आती। जो यह नहीं जानता कि आग में हाथ डालने से हाथ जलता है, वह यदि आग में हाथ डालता है तो बात समझ में आ जाती है। जो परिणाम को जानते हुए भी आग में हाथ डालता है तो असमंजसता पैदा हो जाती है। इसका समाधान यही है कि वैसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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