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इच्छा और नैतिकता
प्रतिद्वन्द्वी इच्छाएं जागती हैं और अव्यक्त ध्वनि में कहती हैं—कैसा पागलपन! क्या ईमानदारी से, नैतिकता से कभी धंधा चला है ? धन का अर्जन हुआ है ? कैसे ब्याहोगे अपनी बेटियों को? खर्च के लिए कहां से आएगा पैसा ? ये प्रतिद्वन्द्वी इच्छाएं ऐसा घेरा डालती हैं कि उस व्यक्ति का नैतिक बने रहने का लक्ष्य धरा रह जाता है और अनैतिक आचरण प्रारंभ हो जाता है।
दूसरा बाधक तत्त्व है अहं भाव । यह भी व्यक्ति को नैतिक और सदाचारी रहने नहीं देता। अहं मूल इच्छा पर आवरण डाल देता है । अर्थ मानसिक द्वन्द्व का
भगवान ऋषभ के पुत्र बाहबली समरांगण में विजयी बन गए। फिर वे मुनि हो गए। मुनि बनने के बाद उन्होंने सोचा-भगवान् ऋषभ के चरणों में उपस्थित हो जाऊं। संकल्प कर डाला। दूसरे ही क्षण अहं आगे आ गया । अहं के परिवेश में उन्होंने सोचा-मेरे निन्यानवें छोटे भाई भगवान् के पास दीक्षित हो चुके हैं। वे संयम-पर्याय में मुझसे बड़े हैं। मुझे उन सबको वंदना करनी होगी। क्या मैं बाहुबली किसी के सामने झूकूगा ? क्या बड़ा भाई छोटे भाईयों के सामने नत होगा ? ऐसा नहीं हो सकता। ऋषभ के चरणों में जाने का बाहुबली का संकल्प टूट गया और वे वहीं कायोत्सर्ग की मुद्रा में स्थित हो गए। चरण स्तब्ध हो गए, रुक गए । अहं का वेग प्रबल था। वे उसके आगे हार गए।
यह है अपने द्वारा अपना संघर्ष, स्वयं से स्वयं का युद्ध । इसमें लड़ने वाला कोई दूसरा होता ही नहीं । मानसिक द्वन्द्व का अर्थ है---लड़ने वाला भी स्वयं और प्रतिपक्षी भी स्वयं । द्वन्द्वी भी स्वयं और प्रतिद्वन्द्वी भी स्वयं । पक्ष भी स्वयं और प्रतिपक्ष भी स्वयं । अपनी ही इच्छाएं सामने आकर ऐसा संघर्ष छेड़ देती हैं कि व्यक्ति आगे कुछ कर ही नहीं सकता। इच्छाओं का विवेक
जब इच्छाओं का संघर्ष पैदा हो जाता है, अनेक इच्छाएं पैदा हो जाती हैं तो आदमी को उचित इच्छा का चुनाव करना होता है। जहां इच्छा है वहां विवेक भी है। अगर विवेक नहीं होता तो इच्छा आदमी को अभिभूत कर देती। यह सुविधा है कि इच्छा के साथ विवेक चेतना भी है। हमें एक ऐसा मस्तिष्क मिला है जो इच्छाओं की काट-छांट करता है, चुनाव करता है। चुनाव करना महत्त्व की बात है।
अध्यापक ने विद्यार्थी से पूछा---एक ओर भैस है और एक ओर बुद्धि । तुम क्या लेना पसंद करोगे ? अपनी इच्छा के अनुसार चुनाव करलो। विद्यार्थी बोला---मुझे भंस लेना पसंद है क्योंकि वह मेरे पास नहीं है । अध्यापक बोला .... मेरे सामने यह प्रश्न आता तो मैं भैंस को छोड़कर बुद्धि को लेना
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