________________
अहिंसा के अछूते पहलु
अव्यक्त इच्छा है अविरति
जैन दर्शन और उसकी साधना पद्धति में एक महत्त्वपूर्ण शब्द आता है अविरति । अविरति की तुलना अचेतन इच्छा से की जा सकती है। यह अव्यक्त इच्छा है । व्यक्त इच्छा चेतन बन जाती है। अविरति अव्यक्त इच्छा
प्रश्न पूछा गया-हिंसक कौन ? असत्यवादी कौन ? उत्तर दिया गया- जो जीव को मारता है, वह हिंसक है। वह भी हिंसक है जिसके मन में जीव को मारने की इच्छा बनी हुई है। दोनों हिंसक हैं। जीव का प्रत्यक्षतः घात करने वाला उस समय के लिए हिंसक होता है किन्तु जीव को मारने की जिसके अचेतन मन में इच्छा बनी हुई है, वह व्यक्ति चौबीस घंटा हिंसक है । प्रवृत्ति की दृष्टि से कोई-कोई आदमी कुछ समय के लिए हिंसक बनता
है।
जो झूठ बोलता है वह असत्यवादी है । यह प्रवृत्ति की दृष्टि से है। अवचेतन मन में झूठ बोलने की जो इच्छा बनी हुई है, उसकी अपेक्षा वह आदमी चौबीस घंटा झूठ बोलने वाला है, असत्यवादी है। महावत : अचेतन इच्छा का नियमन
प्रवृत्ति का जगत् बहुत छोटा है। अचेतन इच्छा का जगत् बहुत बड़ा है । इसीलिए साधना के क्षेत्र में इस बात पर ध्यान दिया गया कि विरति होनी चाहिए। हमारा अनुशासन केवल चेतन इच्छा पर ही नहीं, अचेतन इच्छा पर भी होना चाहिए। अचेतन इच्छाओं के नियमन का नाम है महाव्रत
और उनका नियमन करने वाले का नाम है मुनि । जो अचेतन इच्छाओं पर नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकता, वह मुनि नहीं बन सकता। जो अचेतन इच्छाओं पर एक सीमा तक नियंत्रण स्थापित नहीं कर सकता, वह न श्रावक बन सकता है, न अणुव्रती बन सकता है और न नैतिक बन सकता है। अणुव्रती और नैतिक वही बन सकता है जो एक सीमा तक अचेतन इच्छाओं का नियमन करना प्रारंभ कर देता है। संघर्ष इच्छाओं का
इच्छाओं का संघर्ष बहुत बड़ा संघर्ष है। आदमी में मानसिक द्वन्द्व चलता है । एक प्रेरणा उसे लक्ष्य की ओर आकर्षित करती है तो दूसरी प्रेरणा उसे रोकना चाहती है । यह द्वन्द्व चलता रहता है । मेंटल-टेंसन आज की बड़ी बीमारी है। इसका मूल है मानसिक द्वन्द्व, इच्छाओं का संघर्ष । एक आदमी ने नैतिक जीवन जीने का लक्ष्य निर्धारित कर डाला । एक प्रेरणा जागी और लक्ष्य बन गया। जैसे ही वह उस ओर चलना प्रारंभ करता है, दूसरी-दूसरी इच्छाएं विरोध प्रस्तुत करती हैं, अवरोध पैदा करती हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org