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________________ १२६ अहिंसा के अछूते पहलु समझाने-बुझाने पर भी शांत नहीं होती। कोई तीव्र राग, तीव्र द्वेष, तीव्र आकांक्षा की भावना ऐसी जाग गई, जिसका शमन नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति को शांत करने के लिए एक आलंबन और दिया गया। मुमुक्षु सोचेयह बीमारी नहीं जा रही है किन्तु इस शरीर को चले जाना है। अभी नहीं जा रही है, कल चली जाएगी, परसों चली जाएगी। परसों भी नहीं जाएगी तो कम से कम शरीर के साथ अवश्य चली जाएगी। एक दिन शरीर को चले जाना है । यह स्थाई नहीं है । इस सचाई का उद्घाटन कर आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए एक ऐसा चिकित्सा का सूत्र दिया गया, जिसके आधार पर बहत बड़ी चिकित्सा की जा सकती है, हर बीमारी की चिकित्सा की जा सकती है। जिस व्यक्ति ने इस सूत्र को गहराई से पकड़ा है, वह बहुत सारी कठिनाइयों से पार पा सकता है। अध्यात्म के महत्त्वपूर्ण प्रयोग ___ अध्यात्म में चिकित्सा के सूत्र भी बहुत बतलाए गए। आसन, प्राणायाम, धारणा, ध्यान, स्वाध्याय, तपस्या आदि अनेक सूत्र बतलाए गए। एक छोटा-सा प्रयोग-केवल दोनों नथुनों से श्वास लेना और बाएं नथुनों से वेग के साथ निकाल देना। यह प्रयोग बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रयोग है। इसमें न कोई धारणा, न कोई ध्यान, न कोई तपस्या । मात्र प्राणायाम का प्रयोग । किन्तु इससे अपनी इच्छा पर या इन्द्रियों पर नियन्त्रण करने की क्षमता विकसित हो सकती है । इंद्रिय-विजय के लिए इसका प्रयोग किया जा सकता आयुर्वेद के आचार्यों ने चिकित्सा के बहुत सारे सूत्र दिए। एलोपैथिक के क्षेत्र में डाक्टरों ने चिकित्सा के बहुत सारे सूत्र दिए । अध्यात्म के आचार्यों ने भी चिकित्सा के हजारों-हजारों सूत्र दिए । किन्तु जबसे अध्यात्म में प्रयोग की बात कम हुई, वे सूत्र खोते चले गए। आचार्यवर के अनुग्रह से ध्यान का पुनः उन्नयन हुआ। आज सैंकड़ों प्रयोग हमारे सामने प्रस्तुत हैं और वे बड़े महत्त्वपूर्ण सिद्ध हो रहे हैं। इस स्थिति में निदान की बात और अधिक महत्त्वपूर्ण है। सबसे पहले स्वस्थ होने का संकल्प, आस्था को प्रबल बनाना, अपना निदान कराना और चिकित्सा के सूत्र खोजना-यह व्यक्तित्व विकास का महत्त्वपूर्ण क्रम है। रागचरित : द्वेषचरित शिष्य ने पूछा-मैं रागचरित से ग्रस्त हूं। क्या करूं ? गुरु ने कहा नीले रंग का ध्यान करो । शिष्य ने पूछा-भंते ! द्वेषचरित हं, मैं क्या करूं ? गुरु ने कहा-हरे रंग का ध्यान करो। यह बात बहुत सरल लग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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