SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सही निदान : सही चिकित्सा १२७ सकती है पर रागजनित व्यक्ति के लिए नीले रंग का ध्यान बहुत महत्त्वपूर्ण है। यह लेश्या ध्यान का प्रयोग है। अनेक व्यक्ति संध्या करते हैं किन्तु आज संध्या का वह विशुद्ध रूप नहीं रहा। एक ब्राह्मण के लिए संध्या करते समय लाल रंग, सफेद रंग और नीला रंग-तीन रंगों का ध्यान करना जरूरी है, जिससे वह अपने राग पर नियन्त्रण रख सके और अपनी आध्यात्मिक चेतना का विकास कर सके । एक मुनि के लिए लेश्याओं का ध्यान करना जरूरी था, वह भी उतना नहीं रहा । ये सूत्र बहुत छोटे-छोटे हैं किन्तु हैं बहुत महत्त्वपूर्ण । भावनात्मक समस्याओं को सुलझाने के लिए और भावनाओं को ठीक रखने के लिए इन सूत्रों का प्रयोग बहुत आवश्यक है। केवल जरूरत इस बात की है कि हमारी दृष्टि तेज बने, तीक्ष्ण बने, हमारी देखने की क्षमता आगे बढ़े। दृष्टि पारदर्शी बने रमेश ने दिनेश से पूछा-बताओ ! पक्षी की आंखें कैसी होती हैं ? वह कितनी दूर से देख लेता है ? कितनी ऊंचाई से देख लेता है ? दिनेश ने कहा—बहुत तेज होती हैं । रमेश ने पूछा- तुम्हें क्या पता ? दिनेश बोलामुझे पता है। क्योंकि आज तक मैंने किसी पक्षी को चश्मा लगाते हुए नहीं देखा, इसलिए उसकी आंखें बड़ी तेज होती हैं और न ही किसी पक्षी की आंख में मोतियाबिन्द देखा। न आंख पर मोतिया आए और न आंख पर चश्मा लगाना पड़ेऐसी पारदर्शी दृष्टि अध्यात्म के क्षेत्र में बन जाए, इतनी तेज आंख बन जाए तो किसी भी बीमारी का निदान एवं चिकित्सा संभव हो जाएगी। अपेक्षा है-हमारी दृष्टि तेज बने, पारदर्शी बने, तीव्र बने, जिस पर न कभी मोतिया आए और न ही कभी आध्यात्मिक आंख पर चश्मा लगाने की जरूरत ही महसूस हो । उस दृष्टि के द्वारा हम स्वयं अपने गहनतम अन्तराल में छिपी हुई बीमारियों का निदान कर सकें और अपने गुरु के पास जाकर उसकी चिकित्सा करा सकें, चिकित्सा के सूत्र को पा सकें। यह उपक्रम जीवन के लिए बहुत कल्याणकारी होगा और अध्यात्म के क्षेत्र में साधना के लिए जिसने अपना पैर रखा है वह बहुत सौभाग्यशाली और महत्त्वपूर्ण बन जाएगा। इस सचाई को हम निरन्तर याद रखकर अपनी जीवन-यात्रा को सुखपूर्वक आगे बढ़ा सकते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy