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अहिंसा के अछूते पहलु
और अध्यात्म के क्षेत्र से बाहर चले जाने का मतलब है मरना । जब जीने के ति दृढ़ आस्था होगी, निदान और चकित्सा की बात आएगी । जहां स्था ही नहीं है वहां न निदान की जरूरत है और न चिकित्सा की जरूरत
सबसे पहले हमारी आस्था मजबूत बने । प्रेक्षाध्यान में अनुप्रेक्षा का प्रयोग, संकल्प का प्रयोग है। रात को सोते समय संकल्प दोहराया और नींद टूटते ही पहला संकल्प मन में आए कि मुझे आध्यात्मिक जीवन जीना है, मुझे अध्यात्म के क्षेत्र में विकास करना है, अपने व्यक्तित्व को आध्यात्मिक बनाना है । अगर इस संकल्प को कई बार कायोत्सर्ग की मुद्रा में शांतभाव से दोहराया जाए तो आस्था पुष्ट बनेगी, संकल्प दृढ़ होगा । हम जिस संकल्प को लेकर चलते हैं और जब वह संकल्प पुष्ट बनता है तो रास्ता साफ हो जाता है । यह नहीं कहा जा सकता कि अध्यात्म के क्षेत्र में आने वाला व्यक्ति कोई प्रमाद नहीं करता, उसमें कोई अविरति नहीं होती, मिथ्या मान्यताएं नहीं होतीं। ऐसा मानने का कोई कारण नहीं है । उसमें मिथ्या दृष्टिकोण भी हो सकता है, प्रमाद भी हो सकता है, कोई अविरति भी जाग सकती है । यदि संकल्प मजबूत है तो ये सारे अपने आप समाप्त हो जाएंगे । आवश्यकता है पुरुषार्थ की और आवश्यकता है पराक्रम की । यदि आस्था ही प्रबल नहीं है तो कुछ नहीं होगा ।
प्रसन्नता का आधार
में
एक गृहस्थ व्यक्ति हमेशा प्रसन्न रहता था । कभी होता । पड़ोसी सदा कहता- क्या बात है, तुम इतने खुश कभी तुम्हें नाराज नहीं देखा, कभी दुःखी नहीं देखा और कभी देखा । तुम्हारे चेहरे को कुम्हलाया हुआ नहीं देखा । इतना प्रफुल्ल कि कभी पतझड़ देखा ही नहीं । एक दिन उसका जवान और इकलौता बेटा चल बसा । पड़ोसी ने सोचा-सदा कहता है कि कोई बात नहीं, मैं तो खुश ही रहता हूं, आज पता चलेगा। पड़ोसी मन और और भावनाए संजोए वहां गया । वह मुस्करा रहा है, हंस रहा है, चेहरे पर कोई शिकन नहीं, कोई सिलवट नहीं । वैसा ही खिलता हुआ फूल-सा चेहरा । वह अवाक् रह गया यह देखकर | सब लोग चले गए । पड़ोसी उस व्यक्ति के पैर पकड़ कर बोला- भाई ! मैं तो नतमस्तक हो गया हूं । इकलौता जवान लड़का अचानक चल बसा, कोई आधार नहीं रहा, कोई प्राण नहीं रहा फिर भी तुम मुस्करा रहे हो । चेहरे पर एक भी शिकन नहीं । यह कैसे हो सकता है ? उसने कहा- मैंने इस सचाई को समझा है, पकड़ा है कि दुनिया में जो कुछ है वह अस्थिर है । जीवन का एक भी क्षण स्थिर नहीं है । नदी का प्रवाह बहता चला जा रहा है । पानी आता है और चला जाता है । जो क्षण आया, वह
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दुःखी नहीं
रहते हो । उदास नहीं
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