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________________ सही निदान : सही चिकित्सा १२३ बिना किए हो जाता है। विद्यार्थी बोला-फेल होना ऐसा काम है जो बिना किए हो जाता है, प्रयत्न करने की आवश्यकता ही नहीं होती। __ यह ढांकने वाली बात ऐसी है जो बिना सिखाए होती है। कहीं पढ़ाना नहीं पड़ता, हर व्यक्ति जानता है। छद्म करने वाला व्यक्ति जानता है कि किस बात को कैसे ढांका जा सकता है और कैसे उस पर पर्दा डाला जा सकता है। अपनी गलती हो जाने पर भी ढांकने का प्रयत्न होता है। ___ इस बात की अपेक्षा है कि हम ऋजुता का प्रयोग करें। यह प्रयोग एक अनावरण का प्रयोग होगा। इससे सही निदान होने में सुविधा होगी। निदान वहीं सही होगा जहां ऋजुता होगी। प्रश्न है आस्था का बीमारी का तीसरा कारण है-प्रमाद । बहुत सारी बीमारियां प्रमादजनित होती हैं। मनुष्य में आलस्य भी है, मूर्छा भी है, अकर्मण्यता भी है, नींद भी है। ये अनेक कारण हैं, जो बीमारियां पैदा करते हैं। इन सारी बीमारियों के निदान के लिए और कोई साधन न मिले तो व्यक्ति को आत्मा-लोचन या आत्म-निरीक्षण करना होता है। प्रत्येक व्यक्ति देखे-कौन-सी बीमारी है और उसे वह नहीं मिटा पा रहा है। क्या उसे दूसरों का परामर्श लेना चाहिए ? दूसरों के सामने भी अपनी बात रखकर अपना निदान कराना चाहिए ? निदान के पश्चात् उसकी चिकित्सा करानी चाहिए ? इस निरीक्षण का एकमात्र उद्देश्य होता है-स्वस्थ होना । जब यह आस्था प्रबल बन जाए, यह संकल्प प्रबल बन जाए कि मुझे स्वस्थ होना है, 'जिस क्षेत्र के लिए मैं आया हूं मुझे उसी में जीना है', जब यह आस्था प्रबल होगी तो निदान भी संभव बनेगा, चिकित्सा भी संभव बनेगी। आस्था मजबूत हो __ पहला प्रश्न है आस्था का । क्या हम सचमुच अध्यात्म के क्षेत्र में विकास करना चाहते हैं ? क्या हम सचमुच अध्यात्म के क्षेत्र में पूरा जीवन जीना चाहते हैं ? क्या हम सचमुच अध्यात्म के क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहते हैं ? अगर यह आस्था मजबूत हो तो हमारा मार्ग स्पष्ट बनेगा। अगर आस्था मजबूत न हो और हम सोचें-जब तक सुविधा है, ठीक वातावरण है, अनुकूलता है तब तक इस मार्ग पर चलेंगे और जब ये स्थितियां नहीं रहेंगी तो दुनियाँ बहुत बड़ी है, दूसरा मार्ग अपना लेंगे। जब इस प्रकार की आस्था बन जाती है तब न निदान का प्रश्न प्रस्तुत होता है, न चिकित्सा का प्रश्न प्रस्तुत होता है। निदान और चिकित्सा का प्रश्न आस्था पर निर्भर है। यह आस्था जागे-मुझे जीना है, मरना नहीं है। अध्यात्म में रहने का मतलब है जीना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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