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________________ १२२ अहिंसा के अछूते पहलु नहीं होती। कोई बीमारी इतनी स्पष्ट होती है कि तुरन्त पता लग जाता है और कोई बीमारी ऐसी होती है कि उसका पता लगाना कठिन होता है । आजकल निदान के बहुत साधन विकसित हो गए हैं किन्तु अनेक बीमारियों का निदान अभी भी अप्राप्य है। अनेक लोग कहते हैं- कलकत्ता, दिल्ली, बम्बई, मद्रास आदि सारे स्थलों पर चेक करवा लिया। डाक्टर कहते हैंबीमारी नहीं है और मैं बीमारी भोग रहा हूं। यह निदान की वर्तमान स्थिति है। यह स्थिति आध्यात्मिक व्यक्तियों में भी बनती है। कुछ लोग कहते हैं-मैं अमुक अमुक संतों के पास गया, अमुक महात्मा के पास गया, अमुक मुनि-महाराज के पास गया और जितने अध्यात्म के लोग हैं उन सबके पास गया किन्तु समस्या का समाधान नहीं हुआ, कहीं भी निदान नहीं हुआ। इसका एक कारण हो सकता है -इतने तीव्र और सूक्ष्मदर्शी उपकरण हमारे पास नहीं हैं। बहुत सरल है छिपाना अध्यात्म के क्षेत्र में इतने सूक्ष्म उपकरणों के विकास की जरूरत है जिनके द्वारा यह पता लगाया जा सके कि व्यक्ति में यह बीमारी कहां बैठी हुई है ? और इसका निवारण कैसे किया जा सकता है ? वे उपकरण यांत्रिक नहीं, चारित्रिक होंगे। शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति मिले, जिसके कोई समस्या न हो । हर व्यक्ति के मन में समस्या है, जिस पर वह कंट्रोल नहीं कर पाता । वह अपनी समस्या, अपनी बात कह देता है। पूरी बात तो शायद कोई भी कह नहीं पाता। सबके मन में एक आवरण है, एक संकोच है। जो लोग आध्यात्म के क्षेत्र में जी रहे हैं, वे छद्मस्थ हैं। छद्म का अर्थ हैआवरण। आवरण हमारे साथ है। हमारे पास पर्दा है। हम ढांकना जानते हैं, बहुत अच्छी तरह से जानते हैं। इतनी कुशलता से जानते हैं कि अपनी बीमारी का किसी को पता ही नहीं लगने देते। हम किसी को नहीं बताना चाहते हैं कि हम बीमार हैं। बीमारी को ढांकने के लिए हमारे पास बहुत आवरण हैं, छद्म हैं इसीलिए हम छद्मस्थ बन गए। वीतराग बनने के बाद चेतना अनावृत होती है, छद्म समाप्त होता है। ढांकने की जरूरत नहीं रहती। ऋजु व्यक्ति सहज धार्मिक भगवान् महावीर ने कहा-धर्म उसी व्यक्ति में टिकता है जो ऋजु होता है, जो ढांकना नहीं जानता। जो ढांकना जानता है, वह तो मायाचार करेगा। वह ऋजु नहीं होगा। ढांकना बहुत सरल है । बिना सिखाए आदमी सीख जाता है। अध्यापक ने विद्यार्थी से कहा-बताओ ! ऐसा कौन-सा काम है, जो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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