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________________ १२० अहिंसा के अछूते पहलु वह मिथ्या दृष्टिकोण के साथ जुड़ेगी तो मिथ्यात्व का वहन करेगी, अविरति के साथ जुड़ेगी तो अविरति का वहन करेगी और जब प्रमाद के साथ जुड़ेगी तो प्रमाद का वहन करेगी । जब इनके साथ नहीं जुड़ती है तो वह कुछ भी नहीं है। योग अपने आप में न शुभ होता है और न अशुभ होता है । हमारे तीन योग हैं-मन योग, वचन योग और काय योग । मन न शुभ और न अशुभ | वचन न शुभ और न अशुभ । शरीर का योग न शुभ और न अशुभ | ये अपने आप में कुछ नहीं हैं, किन्तु जब ये मिथ्या दृष्टिकोण, अविरति और प्रमाद के साथ जुड़ते हैं तो अशुभ बन जाते हैं और तपस्या आदि के साथ जुड़ते हैं तो शुभ बन जाते हैं । वे शुभ और अशुभ बनते हैं किन्तु प्रकृति से शुभअशुभ नहीं हैं । मिथ्या दृष्टिकोण, अविरति और प्रमाद प्रकृति से ही अशुभ हैं। योग ऐसा नहीं है । बीमारी का कारण : मिथ्या दृष्टिकोण हमें सबसे पहले निदान करना है कि दृष्टिकोण कहीं गलत तो नहीं है । गलत दृष्टिकोण के कारण तो कोई बीमारी नहीं हो रही है । बहुत सारी बीमारियां और बहुत सारे रोग मिथ्या दृष्टिकोण के कारण पैदा होते हैं। यह न सोचें कि हम नव तत्त्व को जानते हैं, इसलिए सम्यक् दृष्टि बन गए हैं। बीमारी कैसे होगी ? सम्यक् दृष्टि बहुत सापेक्ष शब्द है । तत्त्व के विषय में हमारी रुचि सापेक्ष हो गई किन्तु जीवन व्यवहार के प्रति मिथ्या दृष्टिकोण बहुत चलता है । मिथ्या धारणाएं व्यक्ति को बीमार बनाती हैं । आकांक्षा : एक बीमारी दूसरा है अविरति । एक आकांक्षा, इच्छा हजारों-हजारों रूप ले लेती है । किसी व्यक्ति में वस्तु के प्रति लालसा है। किसी में भोजन के प्रति लालसा है, किसी में किसी व्यक्ति के प्रति लालसा है । एक इच्छा अपने परिवेश और वातावरण के अनुसार हजारों रूपों में बदल जाती है । उस इच्छा वाले व्यक्ति को प्राचीन योग साहित्य में, अध्यात्म के साहित्य में रामचरित व्यक्ति कहा गया है । दो प्रकार के व्यक्ति होते हैं- रागचरित और द्वेषचरित । जो व्यक्ति द्वेष प्रधान होते हैं उनमें राग कम होता है, द्वेष प्रबल हो जाता है । वे द्वेष प्रधान व्यक्ति झगड़ा करना, झंझट करना, गालियां देना, निंदा करना, चुगली करना - इन कार्यों में लगे रहते हैं । द्वेष प्रधान व्यक्ति कहेगा- अमुक व्यक्ति ने यह गलती कर दी । उसने चरित्र में यह गलती कर दी, मैं नहीं करता हूं । वह रामचरित आदमी को गलत मानता है और अपने द्वेष को बिलकुल सही मानता है । जो रागचरित व्यक्ति होता है, वह द्वेष करने वाले व्यक्ति को गलत मानता है । वह कहेगा - कितना झगड़ालू है, कितना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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