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सही निदान : सही चिकित्सा
११६ में कोरे निदान केन्द्र हैं वहां चिकित्सा नहीं होती, मात्र निदान होता है । अध्यात्म के क्षेत्र में दो केन्द्रों की जरूरत है--एक निदान का केन्द्र और एक चिकित्सा का केन्द्र । आश्चर्य की बात है कि जहां शारीरिक बीमारियों के लिए सैंकड़ों-सैंकड़ों निदान केन्द्र बने हुए हैं और सैकड़ों-सैकड़ों चिकित्सा केन्द्र बने हुए हैं, वहां अध्यात्म के क्षेत्र में ऐसा कोई केन्द्र अभी स्थापित नहीं है । बीमारी है, पर बीमारी क्या है इसका मनुष्य को ज्ञान नहीं है। व्यक्ति स्वयं निर्णय नहीं कर पाता कि बीमारी क्या है। उसे जानने के लिए निदान कराना होता है। जब तक निदान सही नहीं होता, चिकित्सा की बात सामने ही नहीं आती। जब सही निदान और सही चिकित्सा होती है तब स्वास्थ्य की बात, आध्यात्मिक स्वास्थ्य की बात आ सकती है। परीक्षण जरूरी है
समस्या है न कहीं निदान केन्द्र और न कहीं चिकित्सा-केन्द्र । क्या यह नहीं हो सकता कि आध्यात्मिक संस्थान-पारमार्थिक शिक्षण संस्था एक निदान केन्द्र बने और चिकित्सा केन्द्र भी बने । वहां निदान हो,
और जो भी आध्यात्मिक स्वास्थ्य के लिए प्रवेश पाए, वह सबसे पहले अपना निदान कराए कि स्थिति क्या है।
__ आजकल कोई विदेशी आता है तो सबसे पहले उसका टेस्ट होता है। कहीं एड्स की बीमारी लेकर तो नहीं आया है। यदि बीमारी है तो प्रवेश वर्जित है। वह नहीं आ सकता। अध्यात्म साधना के क्षेत्र में यह परीक्षण जरूरी है, निदान जरूरी है। निदान के उपकरण क्या होंगे ? क्या साधन होंगे? इन पर यदि हम विचार करें तो हमारा तत्ववाद बहुत सहयोगी बनता है। पांच आस्रव की जो अवधारणा है, वह आध्यात्मिक चिकित्सा के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण है। बीमारी के मूल स्रोत तीन हैं
अध्यात्म के क्षेत्र में जितनी बीमारियां पैदा होती हैं, उनके मूल स्रोत तीन हैं-मिथ्या दृष्टिकोण, अविरति और प्रमाद। कषाय मूल बात नहीं है। कषाय तो इनके माध्यम से आ ही जाता है। चंचलता भी कोई बीमारी नहीं है, मूल दोष नहीं है। चंचलता दोष तब बनती है जब वह इनका वहन करती है। वह एक ऐसा मजदूर है जो किराए पर बोझ उठाता है। वह एक ऐसी हवा है जो भार ढोती है और बहुत गर्म हो जाती है, बहुत ठंडी हो जाती है । बेचारा मजदूर भार ढो रहा है। उसका अपना क्या है ? बेचारी हवा भार ढोती है। उसका अपना क्या है ? कुछ भी नहीं है। चंचलता कोई मूल बीमारी नहीं है, वह मात्र बीमारी की संवाहक है। जब
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