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१४. सही निदान । सही चिकित्सा
जीवन की यात्रा
संत अशरफअली बहुत प्रसिद्ध संत थे। वे सहारनपुर से लखनऊ जा रहे थे। पास में सामान ज्यादा था। उन्होंने अपने अनुयायियों से कहासामान ज्यादा है अलग से टिकिट बना लिया जाए। गार्ड ने बात सुनी । वह उनका शिष्य था। उसने कहा-गुरुदेव ! आपके साथ मैं चल रहा हूं फिर अलग से टिकिट बनाने की जरूरत क्या है ? आपका सामान पहुंच जाएगा।
संत ने कहा-तुम कहां तक जाओगे ?
वह बोला- मैं लखनऊ तो नहीं जाऊंगा पर आपका सामान पहुंच जाएगा।
संत-कैसे पहुंचेगा? गार्ड-दूसरे गार्ड की ड्यूटी लगा दूंगा। संत -- क्या तुमको पता है मुझे कहां जाना है ? गार्ड-आपको तो लखनऊ जाना है? संत-नहीं, मुझे और आगे जाना है। गार्ड-कहां जाना है ?
संत--और आगे जाना है। जिंदगी का सफर बहुत बड़ा है। बहुत आगे जाना है। तुम तो सामान पहुंचा दोगे पर मैं बहुत आगे जाऊंगा। बिना टिकिट बनाए सामान ले जाना एक अपराध है और मेरे इस अपराध का जिम्मेवार वहां कौन होगा ? कौन साक्षी बनेगा ?
__ गार्ड की आंखें खुल गई । वह मौन हो गया। टिकिट बन गई। निदान और चिकित्सा
जिन्दगी की जो यात्रा है, बहुत लम्बी है। हम लोग कर्मवाद में विश्वास करते हैं और यह मानते हैं कि अपना किया हआ भुगतान होता है
और वह आगे तक चलता है तो चिंतन की धारा बदल जाती है। हमारा दर्शन जीवन का दर्शन बने । दर्शन कोरा दर्शन ही नहीं रहे । तत्वज्ञान कोरा तत्वज्ञान ही नहीं रहे, वह जीवन का दर्शन बने । वह जीवन का दर्शन तभी बनता है जब यह बात ठीक समझ में आ जाए कि बीमारी का निदान करना है, चिकित्सा करनी है। निदान और चिकित्सा। आजकल बड़े-बड़े शहरों
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