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अहिंसा के अछूते पहलु आचरण और व्यवहार की बात ही कहां से आएगी। न जाने कितने लोग यह मान बैठे हैं कि मेरा स्वभाव नहीं बदलेगा, मेरी आदत नहीं बदलेगी। जो लोग धर्म के क्षेत्र में, साधना के क्षेत्र में आ गए, उनकी भी धारणा यही है कि मेरी आदत तो अब बदलेगी ही नहीं। साधु जीवन में आ जाने के बाद भी कभी-कभी ऐसी धारणा बना लेते है कि अब तो यह आदत बदलने की नहीं है। बड़ा आश्चर्य होता है ! उन्होंने स्वभाव को भी शाश्वत सत्य मान लिया है, एक अस्तिकाय मान लिया। उन्होंने यह मान लिया कि मेरा स्वभाव ऐसा था, है और रहेगा। कितना मिथ्यादर्शन है। पांच अस्तिकाय को विपरीत मानना ही मिथ्यादर्शन नहीं है। जो अशाश्वत है उसे शाश्वत मान लेना भी मिथ्या दर्शन है। अनित्य को नित्य मान लिया, अशाश्वत को शाश्वत मान लिया। यह भी मिथ्यादर्शन है। यह मिथ्यादर्शन बदलना चाहिए, यह धारणा बदलनी चाहिए। स्वभाव बदलता है और जो भावात्मक स्वास्थ्य प्राप्त नहीं है, वह पाया जा सकता है। उसमें विकास किया जा सकता है। यह गतिशील भावना रही तो संभावना उज्ज्वल बन जाएगी और स्थिर बन गए तो कोई संभावना शेष नहीं रहेगी। संकल्प स्वभाव परिवर्तन का
साधना का अर्थ है गतिशीलता। निरंतर गति और निरन्तर परिवर्तन की बात । जो परिवर्तन की बात नहीं सोचता, वह शायद अध्यात्म में प्रवेश पाने का अधिकारी ही नहीं है। उस व्यक्ति में पहली बात यह होनी चाहिए कि मैं अशुभ योग की प्रवृत्तियों और आदतों को बदलना चाहता हूं । इसलिए अध्यात्म में प्रवेश पाना चाहता हूं। यह अर्हता आए तो शायद एक नया रूप निखरेगा। पूरानी भाषा थी-संसार में आग लग रही है इसलिए मैं साधु बनना चाहता हूं, साध्वी बनना चाहती हूं। जन्म-मरण की लाय लग रही है यह भी एक सचाई है, वास्तविकता है। आज हम दूसरी भाषा में सोचें। वह भाषा होगी-मैं अपने पुराने स्वभाव को बदलना चाहता हूं और नए स्वभाव का निर्माण करना चाहता हूं इसलिए अध्यात्म में प्रवेश पाना चाहता हूं। मैं पुराने संस्कारों से मुक्ति पाना चाहता हूं और नए संस्कारों का निर्माण करना चाहता हूं इसलिए अध्यात्म में प्रवेश पाना चाहता हूं । मैं अशुभ योग की प्रवृत्तियों को कम करना चाहता हूं और शुभ योग की प्रवृत्ति का जीवन जीना चाहता हूं इसलिए अध्यात्म में प्रवेश पाना चाहता हूं। यह सम्यक् दर्शन स्पष्ट हो जाए तो अध्यात्म में प्रवेश पाने का अधिकार होता है और वही व्यक्ति भावात्मक स्वास्थ्य का जीवन जी सकता है। सबसे ज्यादा मूल्यवान् भावनात्मक स्वास्थ्य
बहत महत्त्वपूर्ण है भावनात्मक स्वास्थ्य । हमने जीवन को तीन भागों
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