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________________ भावात्मक स्वास्थ्य ११५ अतीत : अध्यात्म का दृष्टिकोण अर्जुनमालाकार, जो प्रतिदिन सात व्यक्तियों की हत्या करते थे, एक ही क्षण में मुनि बन गए। वे उसी राजगृही नगर में जब भिक्षा के लिए जाते तो लोग कहते कि साधु बना है मेरे पिता को मारकर, मेरे भाई को मार कर । जहां भी जाते, गालियों की बौछार मिलती। कितनी अवज्ञा और कितनी अवेहलना ! यह बात तब होती है जब अतीत हावी होता है । अगर यह अध्यात्म की भूमिका होती तो महावीर साधु बनाते ही नहीं। अगर अध्यात्म की भूमिका होती तो वे कभी संत बनते ही नहीं। अध्यात्म की भूमिका में कहा जाएगा- अशुभ योग में से शुभ योग में आ गया, अशुभ भाव में से शुभ भाव में आ गया और स्वभाव बदल गया। जिस व्यक्ति ने यह सोच लिया कि अब मैं वह नहीं करूंगा, जो मेरे द्वारा प्रमादवश पहले किया गया था। "फिर नहीं करूंगा" जिसकी मनोदशा ऐसी बन गई, उसका स्वभाव बदल गया। सामाजिक भूमिका में अगर स्वभाव बदलता है तो सामाजिक लोग इसे स्वीकार नहीं करेंगे । अध्यात्म का स्वीकार है-स्वभाव बदल सकता है और स्वभाव के बदल जाने पर व्यक्ति बदल जाता है । व्यक्ति जिस पर्याय में जी रहा था, वह पर्याय बदल गया । व्यक्ति मर गया । वह जो था, वह तो है ही नहीं। स्वभाव एक पर्याय है विमर्श का बिन्दु है--स्वभाव ध्रुव है या एक पर्याय है ? अगर ध्रुव है तो बदलने की आवश्यकता ही नहीं है और प्रयत्न करने पर भी बदला नहीं जा सकता। जैसा है वैसा का वैसा ही रहेगा। त्रिपदी हैउत्पाद, व्यय और ध्रौव्य की। स्वभाव ध्रौव्य के साथ जुड़ता है तो बदलने का प्रयत्न करना भी हमारी समझदारी नहीं और वह बदलेगा भी नहीं। अगर स्वभाव पर्याय है तो पर्याय का अर्थ होगा उत्पन्न होना और व्यय हो जाना । पर्याय से हम चिपके कैसे रह सकते हैं। हम कैसे कह सकते हैं कि मेरा तो ऐसा ही स्वभाव है यह बदलेगा नहीं ? जो आदत पड़ गई है, वह अब छूटेगी नहीं । इस त्रिपदी के सिद्धांत को जानने वाला कोई भी यह कह नहीं सकता । पर्याय बदल सकता है __ मनुष्य एक पर्याय है। मनुष्य नाम का कोई भी द्रव्य नहीं है। वह एक पर्याय है। मनुष्य, पशु, पक्षी-ये सब पर्याय हैं। पैदा हुए हैं और नष्ट हो जाएंगे। मनुष्य जीवन भी एक पर्याय है । हमारा स्वभाव कौन-सा शाश्वत सत्य आ गया कि बदलेगा ही नहीं । स्वभाव बदल सकता है पर पहले हमारा दर्शन सम्यक् होना चाहिए। जब दर्शन ही सम्यक नहीं है तो फिर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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