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________________ ११४ संघर्ष अतीत और वर्तमान का प्रत्येक व्यक्ति के सामने प्रश्न है - इस मानसिक संघर्ष को कैसे मिटाए ? इस अन्तर्द्वन्द्व की स्थिति को कैसे समाप्त करे ? इसके लिए उपायों की खोज जरूरी है । भावक्रिया का, जागरूकता का, वर्तमान में जीने का जो सूत्र है, वह भावनात्मक स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण सूत्र है । एक जीवन है अतीत का और एक जीवन है वर्तमान का। एक हमारे साथ आ चुका और एक आ रहा होगा । अनागत अभी आया नहीं | हमारे जीवन के तीन प्रकार बन गए - अतीत का जीवन, वर्तमान का जीवन और भविष्य का जीवन । अतीत का जीवन भावनात्मक स्वास्थ्य की दृष्टि से कैसा रहा, यह तो नहीं कहा जा सकता । आगे उसका परिणाम भुगतना है, किन्तु वर्तमान में भी अगर व्यक्ति जागरूक बन जाता है तो समस्या से छुटकारा पा सकता है । यद्यपि एक सीधा संघर्ष है अतीत और वर्तमान में । हर व्यक्ति कहता है यह वही तो है जिसने ऐसा किया था । अतीत का जीवन वर्तमान पर हावी रहता है, अतीत का जीवन वर्तमान का साक्षी रहता है और सामाजिक जीवन में अतीत की छाप ज्यादा होती है । वर्तमान की छाप उसके सामने धुंध जाती है अहिंसा के अछूते पहलु हावी है वर्तमान पर अतीत I परिवार नियोजन का अधिकारी प्रचार करने एक गांव में गया । गांव के लोगों ने उसकी स्थिति का पता लगा लिया। यह अधिकारी कौन है ? इसकी क्या स्थिति है ? इसका परिवार कितना है? उसने बहुत प्रचार किया -- दो से ज्यादा नहीं । बहुत प्रचार किया । उस अधिकारी के १० बच्चे हैं । यह जानकर लोगों को बड़ा ताज्जुब हुआ। एक व्यक्ति बोल उठा — महाशय ! परिवार नियोजन का प्रचार करते हैं और आपके १० बच्चे हैं । अधिकारी बोला- भाई ! क्षमा करे । मैं पहले विकास विभाग में था और वहां से इस विभाग में आया हूं | वर्तमान पर अतीत हावी रहता है। हम वर्तमान को देखते हैं किन्तु अतीत से हटकर नहीं देखते । सामाजिक परिवेश में या सामुदायिक जीवन में वर्तमान बाद में सामने आता है, अतीत पहले ही बोल उठता है । इसलिए हम अतीत को बिल्कुल अस्वीकार भी नहीं कर सकते । अध्यात्म के क्षेत्र में स्थिति बिल्कुल बदल जाती है । अध्यात्म के मूल्य और मानदंड बिल्कुल बदले हुए होते हैं। अगर हम वाल्मिकी को डाकू की दृष्टि से ही देखें तो यह सामाजिक परिवेश हो सकता है, अध्यात्म की भूमिका बिलकुल नहीं हो सकती । अध्यात्म की भूमिका में आज यदि डाकू गया तो वह संत ही है, डाकू था ही नहीं । संत बन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003065
Book TitleAhimsa ke Achut Pahlu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1989
Total Pages208
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Religion
File Size9 MB
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