________________
भावात्मक स्वास्थ्य
११३
बीमारी है, उसके स्वभाव में भी बहुत बदलाव आ जाएगा । उदासी, खिन्नता और चिड़चिड़ापन-ये सारे उसके स्वभाव बनने लग जाएंगे ।
अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का संतुलित होना बहुत आवश्यक है। हम उसके प्रति जागरूक रहें । यद्यपि यह कार्य स्वतः होने वाला है, हमारे वश की बात नहीं है । फिर भी भाव के साथ उनका बहुत बड़ा संबंध है । यदि भाव पवित्र होगा तो अन्तःस्रावी ग्रंथियों का संतुलन बना रहेगा। भावनात्मक स्वास्थ्य में गड़बड़ी आएगी तो अन्तःस्रावी ग्रंथियों में भी गड़बड़ी आ जाएगी। यह एक चक्र है-यदि अन्तःस्रावी ग्रंथियां ठीक काम कर रही हैं तो भाव भी ठीक काम कर रहे हैं, भावनात्मक स्वास्थ्य भी ठीक हो रहा है और यदि भावनात्मक स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो मानना चाहिए कि अंतःस्रावी ग्रन्थियां भी संतुलित नहीं हैं, स्वस्थ नहीं हैं ।
समस्या है अन्तर्द्वन्द्व
मूल प्रश्न है-हम अपने भावों के प्रति जागरूक रहें। इसमें एक बड़ा खतरा है और वह खतरा है मानसिक संघर्ष का। व्यक्ति के भीतर एक अन्तर्द्वन्द्व चलता है, मानसिक संघर्ष चलता है । वह संघर्ष का जीवन जीता है। व्यक्ति जानता है कि बहुत खाना अच्छा नहीं है, ज्यादा गरिष्ठ भोजन करना अच्छा नहीं है। किन्तु इच्छा इतनी प्रबल होती है वह खाए बिना रह नहीं सकता । जब भी कोई प्रसंग आएगा वह खाये बिना नहीं रहेगा। खाने के बाद वह सोचता है-मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। यह बुरा हुआ है । खाएगा भी और बुरा भी सोचेगा।
कुछ लोगों में नशा करने की आदत हो जाती है । नशा करते हैं और साथ में यह भी जानते हैं कि यह बुरा है। ऐसा नहीं करना चाहिए । कुछ व्यक्तियों को अप्राकृतिक मैथुन की आदत हो जाती है। वे जानते हैं इससे सारी शक्तियां समाप्त होती हैं, पागलपन की स्थिति बन जाती है और एड्स तक की स्थिति बन जाती है । जानते हैं यह काम अच्छा नहीं है पर इच्छा प्रबल होने पर रहा ही नहीं जाता। फिर कहते हैं कि यह बुरा हुआ, ऐसा नहीं करना चाहिए था। यह है मानसिक संघर्ष । इसका नाम है अन्तर्द्वन्द्व । यानी अच्छा नहीं जानते हुए भी कार्य को करना। एक आदमी ऐसा है जो बुरा करता है किन्तु जानता नहीं है कि बुरा है, उसमें कम से कम मानसिक संघर्ष तो नहीं होता । जो व्यक्ति यह जानता है कि यह करना बुरा है फिर भी करता है और करने के बाद भी यह सोचता है कि ऐसा नहीं करना चाहिए था, बहुत बुरा हुआ। यह अन्तर्द्वन्द्व भावनात्मक स्वास्थ्य को बहुत बिगाड़ता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org