SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अतीत का अनावरण ७६ स्वस्थता चर्म चक्षुओं की मैंने जोधपुर में आंखों की चिकित्सा कराई। कुछ लाभ हुआ पर पर्याप्त लाभ 'नहीं हआ। दानों की चुभन और पानी गिरना-ये चलते रहे। मुनिवर ने अनेक उपाय किए। वे केवल अध्ययन ही नहीं, जीवन की सारी व्यवस्था को संभाले हुए थे। आंख का प्रश्न बहुत बड़ा प्रश्न है। हम लोग 'खेरवा' में थे। आंखों की चुभन के कारण नींद नहीं आ रही थी। मन उद्वेलित हो उठा। मन में संकल्प और विकल्प का जाल-सा बिछ गया। सोचा, आंखों की यही स्थिति रही तो जीवन व्यर्थ ही चला जाएगा। मैं अध्ययन नहीं कर पाऊंगा और न ही विकास कर पाऊंगा। पूज्य गुरुदेव के साथ भी कैसे रह सकूँगा? क्या मुझे मुनिवर से भी अलग रहना पड़ेगा? लम्बे समय तक ये संकल्प मुझे सताते रहे। फिर अचानक आस्था का स्वर जागा। रात के चार बजे होंगे। मन में अकल्पित शक्ति उतर आयी। मन ही मन मैंने कहा- 'मैं बिल्कुल ठीक हो जाऊंगा। मेरी आंखों की बीमारी ठीक हो जाएगी और मैं अपने लक्ष्य तक पहुंच जाऊंगा।' दिन में मैंने सारी बात मुनिवर को बताई। उन्होंने मुझे आश्वासन दिया। मेरा मन और अधिक हल्का हो गया। उन्होंने उपचार की ओर अधिक ध्यान दिया। अनेक औषधियों का प्रयोग किया, पर लाभ नहीं हुआ। उदयपुर में दानों को मिश्री से घिसना शुरू किया। उससे कुछ लाभ हुआ और बीमारी की भयंकरता समाप्त हो गई। मैं अनुभव करता हूं कि मेरे विद्या-गुरु ने मुझे अन्तश्चक्षु का ही दान नहीं दिया, चर्म-चक्षुओं का भी दान दिया है। अप्रसन्नता के क्षण मुनि छत्रमलजी व्याख्यान की सामग्री का संकलन करते थे। मेरे मन में भी यह भावना जागी। मैंने भी उसके संकलन का निर्णय किया। मुनिवर को पता चला। उन्होंने मनाही कर दी। मुझे ठेस लगी। उस समय उसकी जरूरत नहीं थी, पर विद्यार्थियों में होड़ चलती थी। कोई एक विद्यार्थी साधु व्याख्यान की सामग्री संकलित करे तो दूसरा कैसे नहीं करे? मैंने फिर आग्रह किया। मुनिवर अप्रसन्न हो गए। मैं इस विषय में बहुत जागरूक रहता कि वे अप्रसन्न न हों। पर कभी-कभार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy