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________________ अतीत का अनावरण ७३ और बुद्धि-दोनों का विकास हुआ नहीं था। मेरे और सब साथी साधनिका को हृदयंगम करते जाते थे किन्तु मुझे उसे समझने में बड़ी कठिनाई हो रही थी। बीदासर की घटना है। स्वरांत पल्लिंग की साधनिका चल रही थी। हमें बताया गया 'जिन' शब्द की प्रथमा विभक्ति के एकवचन में 'सि' प्रत्यय का योग करने पर 'जिनः' रूप बनता है। मैंने पूछा-हम 'सि' ही क्यों जोड़ें? इसके स्थान पर 'ति' क्यों न जोड़ें? कितना अजीब प्रश्न था! कोई मेधावी छात्र ऐसा प्रश्न नहीं कर सकता। पर मैं बहुत छोटे गांव से निष्क्रमण कर आया था और गांव में मेधा या बुद्धि को विकसित होने का अवसर नहीं मिला, इसीलिए यह कठिनाई आ रही थी। आचार्य हरिभद्र ने 'ग्राम' शब्द की व्युत्पत्ति की है-जो बुद्धि आदि गुणों का ग्रास करता है, वह ग्राम है। बौद्धिक विकास के लिए एक वातावरण चाहिए। ग्राम में वैसा वातावरण नहीं मिलता, इसलिए ग्राम में रहने वालों की बुद्धि कुंठित हो जाती है। उनमें बुद्धि का बीज नहीं होता, ऐसा नहीं है। उसे प्रस्फुटित होने की सामग्री नहीं मिलती, यह एक सचाई है। मैं एक छोटा बच्चा था। मुझे बुद्धि के विकास और कुंठा-ये दोनों अवसर नहीं मिले। मेरी मंदता का कारण शायद अवस्था के साथ जुड़ा हुआ था। एक निश्चित अवस्था से पहले बुद्धि का विकास नहीं होना मेरी नियति को मान्य था। गुरु का वात्सल्य पूज्य कालूगणीजी को मैं बहुत प्रिय था। वे मुझ पर अनुशासन कम करते, करुणादृष्टि से प्लावित अधिक करते। श्रीडूंगरगढ़ की घटना है। सर्दी का मौसम था। मैं पूज्य गुरुदेव के सामने बैठा था। उन्होंने मेरे भावों को पढ़ा और पूछा- 'क्या नाश्ता नहीं मिला? मैंने कहा-'नहीं मिला।' 'क्या आजकल बन्द हो गया? मैंने कहा-'हां, अभी बन्द है।' पूज्य गुरुदेव ने तत्काल साध्वी सोनांजी से कहा-'नाश्ता ला दो।' टूटी हुई श्रृंखला फिर जुड़ गई। नाश्ता कोई बड़ी बात नहीं थी। प्रश्न है स्नेह का, करुणा का। यदि बालक को स्नेहपूर्ण वातावरण मिलता है तो विकास की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। ताड़ना में सिकुड़न पैदा होती है और स्नेह में विकास । ताड़ना परिस्थिति विशेष में होने वाली विवशता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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