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________________ ७२ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ हुआ। राजा बहुत प्रसन्न हुआ। अध्यापक से पूछा-'राजकुमार ने विद्यार्जन कैसे किया? अध्यापक ने कहा-‘बहुत अच्छे ढंग से किया, विनयपूर्वक किया। राजकुमार से पूछा- 'गुरुजी ने तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया? राजकुमार बोला- 'बारह वर्ष तक तो अच्छा किया पर आज । राजा ने पूछा-'आज फिर क्या हुआ? राजकुमार ने पोटली की बात सुनाई और राजा का चेहरा तमतमा उठा। पूछा तो उत्तर मिला-'वह भी पढ़ाई का अंग था। वह पाठ राजकुमार को ही पढ़ाना था। आगे चलकर दंड वही देगा। भार उठाने में कितना कष्ट होता है. इसका भान कराना था। यह भान हो गया है। अब वह किसी से अधिक भार नहीं उठवाएगा। राजा के पास अब कहने के लिए कुछ नहीं था। आचार्यवर ने कहा-अध्यापक राजकुमार से पोटली उठवा सकता है, तब फिर। हमारे पास भी वापस कहने को कुछ नहीं था। हम चले आए। मन में और चिन्ता पैदा हो गई कि मुनिवर को पता चला जाएगा तो वे क्या कहेंगे? पढ़ने को कैसे जाएं? सूर्योदय हुआ। श्लोक-वाचन के लिए सकुचाते-से गए और बांच कर बिना कुछ उलाहना लिये आ गए। कई दिनों तक मन में भय बना रहा, पर आपने कभी हमें भयभीत नहीं किया। आपको उस स्थिति का पता लग गया, पर हमें यह पता नहीं लगने दिया कि आपको उस स्थिति का पता लग गया है। अनुशासन एक कला है। उसका शिल्पी यह जानता है कि कब कहा जाए और कब सहा जाए। सर्वत्र कहा ही जाए तो धागा टूट जाता है और सर्वत्र सहा ही जाए तो वह हाथ से छूट जाता है। इसलिए वह मर्यादाओं की रेखाओं को जानकर चलता है। सि क्यों, ति क्यों नहीं हमारे संघ में उन्हीं दिनों व्याकरण के दो ग्रन्थ तैयार हुए। मुनि चौथमलजी स्वामी और पंडित रघुनन्दनजी के संयुक्त प्रयास से 'भिक्षु शब्दानुशासन' तैयार हुआ और 'कालुकौमुदी' का प्रणयन मुनि चौथमलजी स्वामी ने किया। हम सबने ‘कालुकौमुदी' का पाठ कंठस्थ करना शुरू किया और उसकी साधनिका भी प्रारम्भ की। मेरी स्मृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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