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________________ समाज अध्यात्म से अनुप्राणित हो ५७ आचारांग से उपलब्ध हुआ है। वहां एक सूक्त है- 'आवीलए, पवीलए निवीलए'-इस एक संदर्भ में मुनि के समग्र जीवन का स्पष्ट निदर्शन है। दीक्षित होने के बाद मुनि सबसे पहले अध्ययन और साधना में अपना जीवन लगाए, यह आपीडन है। उसके बाद वह संघ से जो सेवा ली है, उसका ऋण चुकाए, यह प्रपीड़न है और ऋण-मुक्त होने के बाद समाधिमरण की तैयारी करे, यह निष्पीडन है। मैं चाहता हूं मेरा यह दर्शन हमारे धर्म-संघ में क्रियान्वित हो। आपका यह दर्शन और क्रियान्विति बहुत अच्छी बात है, किन्तु इसका तरीका क्या होगा? ० तरीका तो कुछ निर्धारित करना ही होगा। वैसे हर कार्य की निष्पत्ति के लिए कुछ विशिष्ट परिस्थितियों का निर्माण जरूरी होता है। जीवन-निर्माण के दर्शन की क्रियान्विति का श्रीगणेश व्यक्तिगत साधना के लिए कम-से-कम एक घंटा समय लगाने के संकल्प से शुरू हो ही गया है। इसकी निष्पन्नता के आसार मैं आगामी दशक में देख रहा हूं। इतनी बड़ी योजना के क्रियान्वयन में दस वर्ष का समय कोई अधिक नहीं है। मुझे विश्वास है कि गुरुदेव का सफल मार्ग-दर्शन उपलब्ध होने पर यह काम और अधिक सरल हो जाएगा। साधना में एक घंटा समय लगाने का संकल्प कई साधु-साध्वियों ने लिया है, पर क्या समय लगाने मात्र से हमारा लक्ष्य पूरा हो जाएगा? मुझे तो ऐसा लगता है कि जब तक वृत्तियों का रूपान्तरण नहीं होगा, व्यक्ति-निर्माण का स्वप्न भी मात्र स्वप्न बनकर रह जाएगा। इस संबंध में आपकी क्या राय है? केवल समय लगाने मात्र से वृत्ति-परिवर्तन की बात से मैं भी सहमत नहीं हूं। एक-दो घंटे के समय में स्वयं को प्रशिक्षित करने की विधि हस्तगत हो जाए, यह जरूरी है। इसके लिए मैं सोचता हूं कि साधु-साध्वियों को प्रशिक्षण के लिए व्यवस्था और अवकाश दिया जाए, तो हमारा स्वप्न स्वप्न न रहकर यथार्थ बन जाएगा। इस स्वप्न को फलीभूत देख मुझे जो प्रसन्नता होगी, वह भी अनिर्वचनीय ही होगी। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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