________________
नया दायित्व : नया प्रस्थान ३१
किसी विशेषण के पीठ पर बिठाने की जरूरत नहीं है ।
७. मैंने सोचा- पद के बिना भी काम किया जा सकता है । इस धारणा का उज्जीवन होना चाहिए, जिससे कि पद के पीछे दौड़ने की मनोवृत्ति में अन्तर आए।
सत्ता और अधिकार पर रहा व्यक्ति मुक्त बात नहीं कह सकता। सत्ता से ऊपर उठा हुआ व्यक्ति निःसंकोच अपनी बात जनता के सामने प्रस्तुत कर सकता है ।
1
६. आज जैन संप्रदायों में आचार्यों की बाढ़ आ रही है । कहीं शिष्य कम और आचार्य अधिक न हो जाएं। इस समस्या का समाधान है-पद की अपेक्षा साधना का आकर्षण अधिक बढ़े।
तेरापंथ धर्मसंघ संगठन और कार्यक्षेत्र की दृष्टि से बहुत विशाल संघ है। पूज्य गुरुदेव के नेतृत्व में समाज, राष्ट्र और अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र को कुछ ऐसे कार्यक्रम दिए गए, जो व्यापक हैं, किसी संप्रदाय की सीमा में आबद्ध नहीं हैं । फलतः तेरापंथ के प्रशंसकों और समर्थकों की संख्या अनुयायी वर्ग की संख्या से बहुत अधिक बढ़ी है । गुणवत्ता की दृष्टि से इतने विशाल संघ के दायित्व को अपने शिष्य में वही प्रतिष्ठित कर सकता है, जिसकी चेतना महान्, आध्यात्मिक अनुभूति से ओत-प्रोत तथा द्वैत से अद्वैत की ओर गतिशील है ।
पूज्य गुरुदेव के अनुसार संप्रदाय बहुत उपयोगी, बहुत मूल्यवान् और शक्ति का स्रोत है, किन्तु अहिंसा अथवा अध्यात्म का क्षेत्र संप्रदाय से बहुत विशाल है । संप्रदाय और धर्म एक नहीं है, यह मंत्र - वाक्य महावीर की वाणी में पढ़ा। आचार्य भिक्षु ने उस मंत्र को आगे बढ़ाया । मानव-मात्र के लिए धर्म का द्वार खोला । पूज्य गुरुदेव ने अणुव्रत के माध्यम से उस मंत्र को व्यापक बना दिया । आचार्य तुलसी : इन्सानियत का देवता', 'मानवता का मसीहा' - ये लोकमत संप्रदाय के पारदर्शन की प्रतिध्वनियां हैं ।
पूज्य गुरुदेव ने निर्णय किया है कि अब वे अणुव्रत अनुशास्ता के रूप में अधिक काम करेंगे। हिंसा की समस्याओं पर अधिक ध्यान केन्द्रित करेंगे। अहिंसा और शान्ति का क्षेत्र प्रमुख कार्यक्षेत्र होगा । गुरुदेव ने घोषणा की - " मैं अपनी साधना में लगूंगा, मानवता अथवा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org