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________________ ६. नया दायित्व : नया प्रस्थान हजारों-हजारों लोगों ने आश्चर्य के साथ सुना-'आचार्य तुलसी ने आचार्य पद का दायित्व अपने उत्तराधिकारी युवाचार्य में प्रतिष्ठित कर दिया है। श्वास रोक कर सुना पर विश्वास नहीं हुआ। आचार्य युवाचार्य की नियुक्ति करता है, यह तेरापंथ की परंपरा है किन्तु आचार्य अपने अस्तित्व काल में अपने उत्तराधिकारी को आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित करे, यह अभिनव आलेख है। अनजाना, अनसुना और अनपढ़ा, इसलिए विश्वास न होना आश्चर्य नहीं है। टेलीफोन की हजारों घंटियां बजीं और संवाद की सचाई को जानने की उत्सुकता बढ़ गई। आखिर जो हुआ, उसकी पुष्टि हो गई, फिर भी मन में प्रश्न की तरंगें उठती रहीं। यह क्यों हुआ? किस अन्तःप्रेरणा ने गुरुदेव को ऐसा करने के लिए प्रेरित किया? इन प्रश्नों का उत्तर कोई दूसरा नहीं दे सकता। अनुमान हर कोई कर सकता है पर साक्षात् दर्शन वही कर सकता है, जिसने नए पथ पर अपने चरण बढ़ाए हैं। ___ गुरुदेव ने जो किया, वह अचिंतित नहीं किया। विशेष उद्देश्य, विशेष हेतु और चिन्तन से किया है। उनके चिन्तन के सूत्र उन्हीं की भाषा में इस प्रकार हैं १. मैंने सोचा-तेरापंथ धर्मसंघ का कोई आचार्य इतने लम्बे समय (अट्ठावन वर्ष) तक शासन-सत्ता पर नहीं रहा। मैं सबसे अधिक रहा हूं। अब मुझे इससे निवृत्त होकर प्रायोगिक जीवन जीने का अभ्यास करना चाहिए। २. जयाचार्य (तेरापंथ के चतुर्थ आचार्य) ने शासन-सत्ता से निवृत्त रहने का प्रयोग किया था। उसमें और वर्तमान व्यवस्था में इतना अन्तर है कि जयाचार्य ने अपने युवाचार्य मघवा को एक प्रकार से आचार्य ही Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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