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तेरापंथ की शक्ति का रहस्य १७ आचार्य भिक्षु ने अनेक ग्रन्थ लिखे-अहिंसा की चौपई, व्रताव्रत की चौपई, निक्षेप की चौपई। हर दृष्टि से उन्होंने सिद्धान्त पर बहुत बल दिया और नींव ऐसी मजबूत कर दी है कि उसके आधार पर अनगिनत मंजिलों वाला मकान खड़ा किया जा सकता है। जहां सिद्धान्त का बल, चिंतन का बल नहीं होता, समस्या उलझ जाती है। जिसके पीछे कोई चिंतन नहीं होता, कोई सिद्धान्त नहीं होता, कोई कसौटी नहीं होती, कोई मानदण्ड नहीं होता, उसके सामने समस्या ही समस्या दिखाई देती है, कोई काम वह नहीं कर पाता।
मनोबल तीसरा तत्त्व है मनोबल। सौभाग्य से यह भी हमें प्राप्त है। मनोबल की एक लम्बी परंपरा और एक लम्बा इतिहास रहा है हमारे धर्मसंघ में। थोड़े में कहूं तो अब तक हमारे धर्मसंघ का जो और जितना विकास हुआ है, वह मनोबल के ही आधार पर हुआ है। हमने अपनी यात्रा शुरू की है गालियों की बौछारों के बीच, अपमानों के बीच, अवरोधों के बीच। यहां तक कहा गया-कोई आचार्य भिक्षु को ठहरने के लिए स्थान दे दे तो इक्कीस सामायिक का दण्ड । इन सब अवरोधों, धमकियों और चुनौतियों के बीच हमारी यात्रा चली है। मनोबल हमारा इतना प्रबल था कि रतलाम में हमारे एक मुनि वेणीरामजी को एक दिन में नौ स्थान बदलने पड़े थे, किन्तु मनोबल डिगा नहीं। धन्य हैं वे हमारे साधु-साध्वियां, जिन्होंने हमारे धर्मसंघ के इस मनोबल को बनाए रखा। उपाध्याय अमरमुनि, जो स्थानकवासी संप्रदाय के प्रमुख विद्वान् साधु थे, ने रायपुर की घटना के प्रसंग में लिखा- 'अगर आचार्य तुलसी जैसा मनोबली आचार्य न होता, उसके स्थान पर कोई दूसरा होता तो घुटने टेक देता, भाग जाता।' आज भी न जाने कितनी और कैसी-कैसी समस्याएं आती हैं, किन्तु मनोबल के सहारे पार हो जाती हैं।
अध्यात्म बल चौथा तत्त्व है-अध्यात्म बल। जिस संघ को अध्यात्म का बल प्राप्त नहीं होता, वह कभी बड़ा नहीं बन सकता। बीसवीं सदी की समाप्ति और
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