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________________ १४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ सबसे पहले गुरु-चरणों में विसर्जन करता है और कहता है- 'गुरुदेव! मैं और मेरे साथ के ये साधु या साध्वियां, मेरे पुस्तक-पन्ने-सब आपके चरणों में प्रस्तुत हैं। अब आप जहां रखाएं, वहीं रहने का भाव है।' किसको कहां भेजना है, इसका निर्णय एकमात्र संघपति करते हैं। हमारे यहां इस संबंध में न तो किसी प्रकार का आग्रह, अनुरोध मान्य होता है, न सिफारिश, न किसी प्रकार की पंचायती। हमारा धर्मसंघ त्याग, तपस्या और विसर्जन का संघ है, यह कोई राजनीति का अखाड़ा नहीं है। हमें इन सब बातों पर ध्यान देना है। आचार्य भिक्षु ने यह जो एक नेतृत्व का विधान किया, वह अटूट ही रहेगा। इस परंपरा और विधान की कीमत पर कोई भी परिवर्तन हमें अभीष्ट नहीं है। मैं चाहता हूं कि पद और विशेषण के बजाय दायित्व लिए और दिये जायें। अनुग्रह साध्वीप्रमुखा ने आज प्रातःकाल पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना की-कल के कार्यक्रम में साधु-साध्वियों पर अनुग्रह नहीं किया गया है। संघ के हर साध-साध्वी और समण-समणी के चित्त-समाधि रहे, यह आचार्य का सबसे बड़ा अनुग्रह है। इस पर ध्यान देना मेरा परम कर्तव्य है। किन्तु औपचारिकता के रूप में साध्वीप्रमुखाजी के अनुरोध को ध्यान में रखकर संघ के सभी साधु-साध्वियों को छह मास तक विगय-वर्जन से मुक्ति रहेगी। एक दूसरी बात इसी के साथ और जोड़ता हूं-साठ वर्ष की अवस्था से अधिक अवस्था वाले साधु-साध्वियों को एक वर्ष मर्यादा-महोत्सव से लेकर मर्यादा-महोत्सव तक समुच्चय के कार्य से मुक्ति रहेगी। विसर्जन का अभिषेक आचार्य भिक्षु ने विसर्जन का सूत्र दिया, जयाचार्य ने दिया। पूज्य गुरुदेव ने दो बार दे दिया। इस संबंध में मैं कुछ कहना चाहता हूं-गुरुदेव! कल आपने मेरा आध्यात्मिक अभिषेक किया आचार्य पद का। मैं चाहता हूं कि आचार्यवर के इस विसर्जन का अभिषेक कोई करे। मेरी तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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