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________________ २१६ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ ___ आचार्य श्री तुलसी ने संवत्सरी पर्व की एकता के लिए अनेक बार घोषणा की थी-यदि जैन समाज संवत्सरी के लिए एक तिथि को मान्य करता है तो हम अपनी परंपरा में परिवर्तन भी कर सकते हैं। उस घोषणा के अनुरूप बम्बई प्रस्ताव को मान्य करने से संघीय परंपरा में परिवर्तन भी करना पड़ा। इन आठ वर्षों में परंपरा-परिवर्तन के दो प्रसंग उपस्थित हो गए •वि. सं. २०४५ में हमारी परंपरा के अनुसार संवत्सरी चतुर्थी को होनी चाहिए थी, पर प्रस्ताव के अनुसार हमने पंचमी को संवत्सरी मनाई। • दूसरा प्रसंग इसी वर्ष (वि. सं. २०५०) में है। हमारी परंपरा के अनुसार प्रथम भाद्रपद मास में संवत्सरी मनाई जाती है, किन्तु बम्बई प्रस्ताव के अनुसार हमने दूसरे भाद्रपद मास में संवत्सरी पर्व की आराधना को मान्य किया है। करना ही होगा समस्या का समाधान पर्युषणा या संवत्सरी की परंपरा कोई मूल गुण नहीं है, जिसमें कोई परिवर्तन न किया जा सके। यह सामान्य विधि (उत्सर्ग विधि) और विशेष विधि (अपवाद विधि) युक्त परंपरा है। वास्तव में एकता का लक्ष्य पुष्ट हो तो इसमें परिवर्तन किया जा सकता है। संवत्सरी की भिन्नता को लेकर आने वाली समस्याओं के प्रति हमारी जागरूकता हो तो एक संवत्सरी मनाने की परंपरा का सूत्रपात करने में कहीं कोई सत्य का अतिक्रमण नहीं है। आवश्यकता है इस समस्या पर अनेकांत की दृष्टि से विचार हो और इस अहेतुक उलझन को समाप्त करने के लिए सभी आचार्य, मुनि और प्रबुद्ध श्रावक पहल करें। आखिर एक दिन इस समस्या का समाधान करना ही होगा। जैन समाज के सामने और भी बड़ी-बड़ी समस्याएं हैं। इस छोटी-सी समस्या में उलझने पर बड़ी समस्याओं को सुलझाने का अवसर ही हाथ नहीं लगेगा। मैं विश्वास करता हूं कि हम सब इस विषय पर पूरी गंभीरता से चिन्तन करेंगे, द्वार अपने आप खुल जाएंगे। ऐसा ज्ञात हुआ कि इस वर्ष दिगम्बर समाज दशलक्षण पर्व की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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