________________
परिवर्तन के लिए व्यापक दृष्टिकोण चाहिये १६३. ये शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श क्या हैं? अपने रूप में वे पुद्गल हैं। इन्द्रियों के विषय हैं-ज्ञेय हैं। वे न अच्छे हैं और न बुरे, न हेय हैं न उपादेय। उत्तराध्ययन में कहा है-“ये काम भोग न समता (राग-द्वेष के अभाव) को प्राप्त होते हैं और न ये विकृति को प्राप्त होते हैं। जो मोह मूढ़ होता है वह उनसे विकृति को प्राप्त होता है और वीतराग पुरुष को उनके प्रति समभाव प्राप्त होता है।"
कामभोग सूं सुमता नाहीं हुवे, असुमता पिण तिण सूं नहीं लिगार। कह्यो छे उत्तराधेन बतीस में,
सो में पहली गाथा मझार। ये इन्द्रिय और मन के विषय रागी मनुष्य के लिए दुःख के हेतु बनते हैं और वीतराग के लिए वे दुःख के हेतु नहीं बनते। किन्तु जब तक राग-भाव विद्यमान है तब तक प्रतिसंलीनता का उपदेश हमें प्राप्त है। भगवान् ने कहा है-“ब्रह्मचारी शब्द, रूप, रस, गन्ध और स्पर्श-इन पांच प्रकार के इन्द्रिय-विषयों को सदा के लिए छोड़ दे।" ____ जिस परिग्रह को हम सारी बुराइयों का मूल बतलाते हैं, वह क्या है? आखिर पुद्गल ही तो है। वह अपने आप में न अच्छा है और न बुरा है। आचार्य भिक्षु के शब्दों में
परिग्रहो कह्यो सचित अचित ने मिश्र ते दुरगति माहे डबोवे। ते परिग्रहो तो डबौवे नाही तिणरी मूर्छा विषै विगोवे॥
यों तीन प्रकार को परिग्रहो कह्यो ते,
___ पाप कर्म न लागै तेथी। पाप लागे तिणरी मूर्छा आयां सूं
वले तिणरी इविरत सेती॥
बुरा है हमारा ममत्व। वह पदार्थों से जुड़ता है तब परिग्रह को हम बुरा कहते हैं। पदार्थ ममत्व के उदय के हेतु बनते हैं इसीलिए उपदेश
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org