________________
परिवर्तन की परम्परा : २ १८५ पर बोलना या नहीं, कपड़े धोने या नहीं-ये सारी व्यवहार की बातें हैं। मूलभूत प्रश्न जो विज्ञान ने आज धर्म के सामने ला खड़े किए हैं, उन पर चिन्तन करने की जरूरत है। आज का विज्ञान समूचे जीव-विज्ञान को चुनौती दे रहा है। हमारा समूचा आधार है आत्मा और जीव । इसको चुनौती मिल चुकी है। कर्मवाद को चुनौती मिल चुकी है। हम मानते हैं कि जैसा संस्कार या कर्म होता है वैसा ही जन्म होता है। आज का विज्ञान कहता है-क्या बनना है, क्या बनाना है, यह हमारे हाथ की बात है। एक वैज्ञानिक कह सकता है कि आप इंजीनियर चाहें तो इंजीनियर पैदा कर सकते हैं। वैज्ञानिक चाहें तो वैज्ञानिक पैदा कर सकते हैं। बस, थोड़े-से 'जीनों' का परिवर्तन करना होता है। 'जीन' और 'क्रोमोसोम' में गुणसूत्र आयोजित करेंगे और मनचाहा बना लेंगे। माता-पिता के बिना भी बच्चे उत्पन्न होंगे। बच्चे टेस्ट-ट्यूब में उत्पन्न हो रहे हैं। अनेक नई खोजें हो रही हैं। कुछ ही दशकों में नये तथ्य सामने आएंगे। आज जीवशास्त्र, रसायनशास्त्र, भूगोल, खगोल-इन सभी क्षेत्रों में विज्ञान ने इतनी नयी उपलब्धियां प्राप्त की हैं, इतनी नयी स्थापनाएं की हैं कि आज धर्म का हर प्रश्न पुनः विवेचनीय या समझने योग्य हो गया है।
टेस्ट-ट्यूब में उत्पन्न होने वाला बच्चा वैज्ञानिक के द्वारा नियंत्रित होगा। वह वही सोचेगा जो वैज्ञानिक सोचना चाहेगा। वह वही काम करेगा जो वैज्ञानिक कराना चाहेगा। वैज्ञानिक जिस प्रकार से उसके मस्तिष्क का कंट्रोल करेगा, उसी प्रकार उसका मस्तिष्क संचालित होगा। इसका अर्थ हुआ कि कर्म, आत्मा आदि सारे प्रश्न मीमांसनीय हो गए। हम छोटी-छोटी बातों में न उलझें किन्तु उन मूलभूत समस्याओं को समाधान देने का प्रयत्न करें। हम यह सोचें कि समस्याएं क्यों उभर रही हैं और उन समस्याओं के विषय में हमारा चिन्तन क्या हो सकता है? मैं समूचे जैन समाज या समूचे धार्मिक समाज से अनुरोध की भाषा में कहना चाहूंगा कि आज मूलतः ही आस्तिकता, धर्म, अध्यात्म-ये सब चुनौतियों से घिरे हुए हैं। आज का कोई भी धर्म, कोई भी धर्म का नेता, धार्मिक विचारक और चिन्तक यदि उन मूलभूत चुनौतियों पर विचार करे, ध्यान दे तो धर्म का बहुत बड़ा भला हो सकता है, विकास
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org