________________
१८४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
चिन्तन के क्रम को कभी रोका नहीं जा सकता। नयी बातें पहले भी उत्पन्न हुई थीं, आज भी होती हैं और आगे भी उत्पन्न होंगी। हम यह नहीं कह सकते कि क्या यह बात हमारे पूर्वजों को नहीं सूझी थी? क्यों नहीं सूझी? उनको भी अनेक बातें सूझी थीं, आज भी सूझ सकती हैं और आगे भी सूझ सकती हैं। इस पर हम कोई मर्यादा और सीमा नही बांध सकते।
आचार्य भिक्षु ने जो चिन्तन दिया, उसके आधार पर हम नये-नये प्रश्नों का समाधान कर सकते हैं, उनकी व्यवस्था कर सकते हैं। वह बात हमारी समझ में आ जाए तो ठीक है, उसे स्वीकार करें। कोई एक बात समझ में न आए तो कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। हमारा ज्ञान है ही कितना! अनन्तज्ञान, केवलज्ञान की तुलना में हमारा ज्ञान है ही कितना! जब सारा का सारा अज्ञान है तो एक बात अगर समझ में न आए तो कोई कमी नहीं होगी ज्ञान की । समझ में न आए तो उस बात को हम 'केवलीगम्य' कर दें। यह कितना सुन्दर समाधान है! सत्य के शोधक को अनाग्रही होना चाहिए। वह न कहे कि मैं कहता हूं वही सच है। यदि तुम कहते हो कि मैं कहता हूं वही सच है तो मैं भी कह सकता हूं कि जो मैं कहता हूं वही सच है। तब फिर निर्णायक कौन होगा? कोई नहीं होगा। कोई केवलज्ञानी, अतिशयज्ञानी आज हमारे सामने मौजूद नहीं हैं, जो अन्तिम बात कह सके कि यह अन्तिम बात है और वह हमें मान्य करनी है। किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं है। इस स्थिति में अनाग्रह के आधार पर हम इस बात को चिन्तन के लिए छोड़ सकते हैं किन्तु आग्रह को आगे नहीं चला सकते।
इस आधार पर समन्वय का एक ऐसा रास्ता बना कि किसी भी चर्चा को लेकर, किसी भी प्रश्न को लेकर, किसी नयी बात को लेकर, संघर्ष समाप्त हो गया। उन्होंने कहा-समझ में न आए तो उसे चिन्तन के लिए छोड़ दो। ___मुझे तो लगता है कि हमारे आस-पास के वातावरण में बहुत छोटी बातों को बड़ा रूप देने की मनोवृत्ति बन गई है। किन्तु जो मूलभूत बड़े-बड़े प्रश्न हैं, उन्हें छुआ भी नहीं जा रहा है। आज धर्म के सामने मूलतः चुनौती है विज्ञान की। उस पर कोई चिन्तन नहीं करता। माइक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org