SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिवर्तन की परम्परा : १ १७१ हम एक संगठन और संघ की बात करते हैं, जब हम मर्यादा और सामाचारी की बात करते हैं, जब हम एक नियमावली और एक आचार-संहिता की बात करते हैं तब वहां समझने और समझाने की बात आती है, शास्त्र की बात आती है, परंपरा की बात आती है। वहां इन सबकी समीक्षा प्राप्त होती है। किन्तु इन सारे प्रश्नों के लिए मैंने आपके सामने एक-दो कसौटियां रख दीं। यदि आप इन कसौटियों पर ध्यान दें तो बहुत सारे प्रश्न स्वयं समाहित हो जाएंगे। पहली कसौटी यह है कि हम इस तथ्य को समझने का प्रयत्न करें कि वह आगम के द्वारा सम्मत है या नहीं। यह सबसे बड़ी कसौटी है। यदि वह बात आगमसम्मत है तो चाहे वह व्यवहार में आयी हुई हो या न हो, कोई कठिनाई नहीं है। दूसरी बात यह है कि उसे हमने ठीक से समझा या नहीं। समय-समय की मनोवृत्ति भिन्न-भिन्न होती है। एक समय था कि जैन मुनि स्थान-स्थान पर जाकर प्रवचन नहीं करते थे। हमारे यहां भी यह प्रवृत्ति प्रचलित थी। हमारे साधु-साध्वी भी अन्यत्र जाकर प्रवचन नहीं करते थे। पूछने पर कहते-कुआं प्यासे के पास नहीं जाता, प्यासा कुएं के पास आता है। हमें कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है। जिसे सुनने की प्यास होगी, वह स्वयं यहां आएगा। अणुव्रत आन्दोलन का प्रवर्तन हुआ। स्थान-स्थान पर आयोजन होने लगे। साधु-साध्वी विभिन्न स्थानों में प्रवचन करने के लिए जाने लगे। गुरुदेव के सामने प्रश्न आया। गुरुदेव ने कहा-प्यासा कुएं के पास नहीं जाता है, यह पुराने जमाने की बात थी। आज तो कुआं प्यासे के पास जाता है। घर-घर में ट्यूबवेल और नल लगे हुए हैं। इसका तात्पर्य हुआ कि कुआं प्यासे के पास जा रहा है। यह क्या, आने वाले युग में और भी आश्चर्यकारी बातें सामने आएंगी। ऐसी कल्पनाएं हो चुकी हैं, सिद्धान्त विकसित हो चुके हैं, ऐसे घर बनेंगे, जो स्वचालित होंगे। उनमें न किवाड़ बन्द करने की आवश्यकता होगी, न पंखा चलाने की आवश्यकता होगी। आप किवाड़ के सामने जाएंगे, वे स्वतः खुल जाएंगे। आप कमरे में प्रवेश करेंगे, पंखे स्वयं चलने लगेंगे, बिजली जल जाएगी। अपने आप रसोई बन जाएगी, मशीन उसे टेबल पर परोस देगी, कोई नौकर की आवश्यकता नहीं, रसोई बनाने वाले की भी आवश्यकता नहीं। केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy