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________________ १७ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ अन्याय होगा। __इसलिए आचारशास्त्र के , सामाचारी के और परंपरा के जितने भी विषय हैं उनके निर्णय का दायित्व हम आचार्य पर और संघ पर छोड़ दें तो तर्कपूर्ण और विचारपूर्ण होगा। तेरापंथ धर्मसंघ में परिवर्तन की भी एक पद्धति है। गुरुदेव के समक्ष कोई प्रश्न आता है, गुरुदेव उस पर चिन्तन करते हैं, मनन करते हैं और कुछेक मुनियों को उस विषय पर चर्चा करने लिए फरमा देते हैं। दस-पंद्रह वर्षों में होने वाले सारे परिवर्तनों के पीछे यही प्रक्रिया रही है। माघ महोत्सव के समय जब अधिकांश मुनि उपस्थित होते हैं, तब अनेक प्रश्न चर्चे जाते हैं। वर्ष भर के चिन्तनीय और चर्चनीय विषयों की सूची बना ली जाती है। फिर वह मुनि-समिति उन विषयों पर चर्चा करती है। निष्कर्ष गुरुदेव के समक्ष प्रस्तुत होते हैं। जो निष्कर्ष गुरुदेव को जंच जाते हैं उनकी घोषणा कर देते हैं। उस दिन से वह विषय हमारी सामाचारी का अंग बन जाता है। समूचे संघ में वह विधि प्रचलित हो जाती है। समूचे संघ के द्वारा और गुरुदेव की घोषणा के द्वारा जो बात सामाचारी का अंग बनती है, हमें यह विश्वास कर चलना चाहिए कि वह कोई अचानक ही एक विस्फोट की भांति अवतरित नहीं होती, किन्तु चिन्तनपूर्वक सूझबूझपूर्वक, देश-काल की सारी मर्यादाओं और परिस्थितियों को देखकर, आगम और परंपरा की पूरी मीमांसा करने के बाद ही वह बात हमारे सामने आती है। यदि हम बहुत गहराई में न जा सकें तो कम-से-कम उसका अधिक भार न ढोएं। हमें इस विश्वास के साथ चलना चाहिए कि संघ के द्वारा जो बात सम्मत हो गई है वह साधुत्व की मर्यादा में दोष उत्पन्न करने वाली नहीं है। जहां अध्यात्म का प्रश्न है, आन्तरिक साधना का प्रश्न है वहां बाहरी कसौटी का कोई अर्थ नहीं होता। वहां व्यक्ति कि साधना केवल अपने लिए और अपने भीतर जाने के लिए होती है, अपने आपको ही देखने के लिए होती है। वहां न कोई चर्चा, न कोई समालोचना, न कोई समीक्षा, न प्रश्न और न उत्तर, न समझना और न समझाना, वहां नितांत व्यक्ति की ही बात होती है। जब हम व्यवहार की बात करते हैं, जब Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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