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१५४ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ एक ही बात है। जिस किसी मुनि ने अनुशासन का उल्लंघन किया, उसको बहुत बड़ा दंड मिला।
तेरापंथ संघ की व्यवस्था पूर्ण समाजवादी व्यवस्था है। यहां पूर्ण समाजवाद मूर्त होता है। चार मुनि हैं और एक रोटी मिली है तो चारों उस रोटी का एक चौथाई हिस्सा लेंगे। चार गिलास पानी है तो प्रत्येक मुनि एक-एक गिलासा पानी ही पीएगा, ज्यादा नहीं। यह अनुशासन है, मर्यादा है। एक बार एक मुनि ने पानी पीने में लापरवाही बरती। निर्धारित मर्यादा के अनुरूप आचरण नहीं किया। उसको तत्काल संघ से बहिष्कृत कर दिया। एक छोटी-सी बात के लिए इतना बड़ा दंड। प्रश्न छोटी-सी बात का नहीं है, प्रश्न है अनुशासन का। इस प्रकार प्रत्येक आचार्य ने अनुशासन को अक्षुण्ण रखने के लिए प्रयत्न किया है, कर रहे हैं और करेंगे। तेरापंथ की रीढ़ है, मर्यादा का पालन। तेरापंथ की रीढ़ है, अनुशासन का पालन। ___ मैं सदा गुरुदेव के पास रहा। उनकी प्रत्येक प्रवृत्ति में सहभागी बना। आज वे मेरे सम्मुख नहीं हैं। क्षेत्र की दूरी है, पर तादात्म्य जुड़ा हुआ है। जो वे संगरूर में संपादित कर रहे हैं, वही मैं यहां लाडनूं में कर रहा हूं। हमारा तादात्म्य अतर्कित है। हमने मृगशिर कृष्णा दूज को गुरुदेव से विदाई ली और चार-पांच दिन पश्चात् गुरुदेव का एक पत्र मुझे मिला। उसमें गुरुदेव ने इस तादात्म्य की चर्चा की। (एक मुनि ने वह पत्र अविकल रूप से सुनाया) वह पत्र इस प्रकार है
युवाचार्यश्री महाप्रज्ञ! सादर सुखपृच्छा। धर्मपालजी की कोठी से जब हमने चतुर्विध संघ के साथ विदा किया तब उस नीम के नीचे दोनों के कंठ अवरुद्ध थे। विशेष बोल नहीं पाए। पर अत्यन्त उल्लासपूर्ण वातावरण में विदाई हुई, प्रसन्नता। मार्ग में स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए सानन्द विहार करना और लाडनूं विश्व भारती में यथासमय सानन्द पहुंच जाना। तुम हमारे संघ की निधि हो। मेरे मन में तुम्हारे प्रति जो हार्दिक वात्सल्य भाव है, वह न वाणी का विषय है और न लेखनी का। वैसे तुम्हारे मन में भी जो श्रद्धाभाव है, वह भी वैसा ही है, अनिर्वचनीय है। बस वैसा ही
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