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________________ २८, मर्यादा पत्र : मर्यादा महोत्सव का आधार आज ११६वें मर्यादा महोत्सव का शुभ दिन है। यह महान् महोत्सव एक मर्यादा पत्र के आधार पर मनाया जाता है। वह मर्यादा पत्र आचार्य भिक्षु ने १८५६ माघ शुक्ला सप्तमी शनिश्चर वार को लिखा था। वह मूल पत्र आचार्याश्री.तुलसी के पास संगरूर में है। वे भी संभवतः इस समय उसी पत्र को जनता को दिखा रहे होंगे। मेरे हाथ में जो मर्यादा पत्र है वह तेरापंथ के तीसरे आचार्य श्रीमद् ऋषिराय के हाथ का लिखा हुआ है। मर्यादा जीवन है। मर्यादा संयम है। यह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है। समय-समय पर मर्यादाओं का निर्माण होता है। उनमें परिवर्तन और परिवर्द्धन होता है। मर्यादाएं देश, काल और क्षेत्र से आबद्ध होती हैं। उनको शाश्वत मान लेने से बड़ी कठिनाइयां उत्पन्न हो जाती हैं। हमारा यह विवेक जागृत हो कि देश, काल और क्षेत्र से आबद्ध जो वस्तु है, उसको उस देश, काल और क्षेत्र के लिए अनिवार्य मानें। जो व्यक्ति मर्यादा को तुच्छ मानता है, वह स्वयं तुच्छ बन जाता है। मर्यादा पालन का विवेक स्वयं के अन्तःकरण से स्फूर्त होना चाहिए। उसके लिए दूसरे का साक्ष्य अपेक्षित नहीं होता। आचार्य किस-किस साधु-साध्वी के साथ जाते हैं। आज हमारे साधु-साध्वी दूर-दूर देशों में विहार करते हैं और अपनी मर्यादाओं का पूर्ण रूप से पालन करते हैं। यत्र-तत्र स्खलनाएं होने पर उन्हें स्वयं प्रायश्चित्त करना होता है। हमारी मर्यादाएं अन्तःकरण से स्वीकृत मर्यादाएं हैं। वे थोपी नहीं जाती, वे ग्रहण की जाती हैं। ___ आचार्य भिक्षु क्रान्तिकारी आचार्य थे। वे स्वयं मर्यादा में रहे और मर्यादाओं में रहना सिखाया। मर्यादा में रहना और अनुशासन मानना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003064
Book TitleAtit ka Basant Vartaman ka Saurabh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages242
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size9 MB
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